Monday, September 5, 2016

मृत बच्चा जी उठा, डॉक्टर बने भगवान ।

डॉक्टर भगवान  होते हैं यह साबित कर दिये युवा डॉक्टर विकास अग्रवाल जी ने ।
             जी हाँ भाई साहब ! आप जो पढ कर एकदम सच है । आज जबकि देश के कई हिस्सों में  डॉक्टरों के द्वारा लापरवाही या अस्पतालों की लापरवाही के ढेरों मामले आ रहे हैं तो उस बीच इस तरह की खबरों को दबाना ना केवल डॉक्टरों के साथ नाइंसाफी होगी बल्कि आम जनता का भी विश्वास बढेगा की हाँ ! सचमुच डॉक्टर भगवान होते हैं । छत्तीसगढ के ह्दय स्थल इस्पात नगरी भिलाई  में स्थित है बीएम शाह अस्पताल । यह हॉस्पिटल अपने स्लोगन इलाज मानव का मानवता से पूरी तरह से सार्थक है क्योकि इस ट्रस्ट हॉस्पिटल में महज 100 रूपये की पर्ची मे गरीब मरीज अपना चेकअप करवा लेते है । इस हास्पिटल मे जिस तरह से मरीजों की सहायता की जाती है उसका उल्लेख करना उचित नही होगा क्योंकि बीएम शाह अस्पताल जिस तरह से लोगों को सहायता पहुंचाता है , जानकारी मिलने पर लोग उसका सदुपयोग कम , दुरूपयोग ज्यादा करने लगेंगे ।  
अब बीएम शाह अस्पताल में मिलने वाली सस्ती चिकित्सीय सुविधाओं को छोडकर बात करते हैं उस घटना की जिसके लिये आप इस जगह पर पधारे हैं । वैसे ये कोई मदारी की तरह की घटना नही है कि यूँ ही लिख कर खत्म कर दी जाए इस घटना को पढने के साथ साथ आपको यह भी समझना होगा कि जब ये बीएम शाह मे हो सकता है तो किसी दुसरे अस्पताल मे क्यों नही ।

वह चमत्कारी बालक जो डेढ घण्टे तक धडकनें बंद होने के बाद फिर से जीवित हो गया ।

                                        ये है महज 14 साल का बालक अंकित रॉय जिसे घर में जय के नाम से पुकारते हैं । पिता बृजेश रॉय रिजर्व बैंक नागपुर में गार्ड की नौकरी करते हैं और यह अपनी माँ और दो बडी बहनों के साथ स्टील नगर, केम्प 1 मे निवासरत हैं ।  29 अगस्त 2016 की रात 8 बजे के लगभग यह नहाने के लिए बाथरूम गया किंतु पास ही रखे कूलर में अचानक करंट प्रवाहित होने के कारण यह कूलर से चिपक कर वहीँ गिर गया । कुछ दूरी पर अंकित की माँ को कुछ गिरने की आवाज सुनाई दी तो वह बाथरूम के पास जाकर देखी कि अंकित का एक हाथ कूलर से चिपका हुआ है और पूरी बाडी जमीन पर गिरी हुई है तो वह तुरंत भाग कर मेनस्वीच बंद कर दी और आसपास के लोगों को आवाज देती हुई अंकित की ओर भागी । इस दौरान लगभग 10 मिनट बीत चूके थे और अंकित बेहोश हो गया था । घर वालों ने तुरंत घर से नजदीक अस्पताल बीएम शाह लेकर पहुंचे । ( अंकित के मामा नरेन्द्र पाण्डेय के अनुसार जब वो बीएम शाह लेकर पहुंचे उस समय तक अंकित की धडकनें बंद हो चूकी थी ) 
                                                 बीएम शाह की केजुअल्टी मे उस समय कार्डियोलॉजिस्ट विकास अग्रवाल मौजूद थे । उन्होने जांच करे तो पाए कि अंकित की धडकनें बंद हो चुकी हैं, लेकिन अंकित की कम उम्र के कारण संभवतः उसकी हार्टबीट लौट आए ये सोचकर डॉक्टर विकास नें अपने सहयोगी सिनीयर डॉक्टर नेम सिंग जी से संपर्क करे और उनकी सहमति मिलने के बाद परिवार वालों को ढांढस बंधाये कि  हम लोग कोशिश करके देखते हैं । इसके बाद धडकन बंद होने की बात  अंकित की माँ को न बता कर उसके मामा को बताये तथा स्पष्ट कह दिये कि ये एक बार कोशिश करके देखना चाहते हैं । उन्होने बच्चे को तुरंत वेंटिलेटर मे शिफ्ट कराए और बीएम शाह अस्पताल के डायरेक्टर रवि शाह जी को पूरी बात बताये । 
उस समय अस्पताल मैनेजमेंट  के सामने दो बडी समस्या खडी हो गई थी - 
1. अंकित के परिवार वालों को यह पता था कि उसकी धडकने बंद हो गई है और वे उसकी मृत्यु हो चुकी है यह मानकर  अपने परिजनों को उसकी मौत की खबर भेज चूके थे और ऐसी स्थितिमें यदि बच्चे के इलाज का पैसा जमा कराने को कहा जाता तो लोगों को अस्पताल पर आरोप लगाते हुए हंगामा करने का अवसर मिलता और अस्पताल की बदनामी होती ।
2. बच्चे की कम उम्र को देखते हुए डॉक्टरों के द्वारा जिस तरह से प्रयास की बात कही गई तथा मैनेजमेंट से रिस्क उठाने का आग्रह किया गया उसे  नजरअंदाज करना भी मुश्किल हो रहा था । 
                                   अंततः इस स्थिति से निपटने के लिये रवि शाह जी ने स्वयं के रिस्क पर योजनाबद्ध तरिके से काम शुरू करवा दिये । उनके द्वारा बिलिंग काउंटर को बता दिया गया कि वे अंकित के परिजनों से केवल पैसे जमा करने को कहें और उनके द्वारा बहस करने या दुर्व्यवहार अथवा उग्र व्यवहार होने पर कोई भी बात ना करें और पैसे के लिये दुबारा ना कहें । यानि अंकित की यदि धडकने वापिस नही आती है तो उसका समस्त बिल अस्पताल प्रबंधन वहन करता । इस तरह से डॉक्टर विकास अग्रवाल एवं डॉक्टर नेम सिंग जी  के द्वारा अंकित की धडकने वापिस लाने के लिये आपरेशन संजीवनी शुरू किया गया । इधर आईसीयू मे मौजूद नर्सिंग स्टाफ नें तब तक अंकित का चेस्ट कंप्रेशन ( CPR ) शुरू कर दिये थे  । धडकनें बंद होने की स्थिति मे यही एक मात्र रास्ता बचता है और मेडिकल साइंस के अनुसार CPR शुरू होने  के 45 मिनट तक यदि धडकन नही लौटती है तो इतने लंबे समय तक रक्त संचार रूकने के कारण मरीज के लीवर, कीडनी खराब हो जाते है और मस्तिष्क मे रक्त संचार ना पहुंचने के कारण उसे ब्रेन डेड घोषित कर दिया जाता है   

                                                        जब 45 मिनट भी बीत चुके लेकिन धडकनें वापिस नही आईं तो डॉक्टर निराश होकर अपने चैंबर मे चले गए । इधर नर्सिंग स्टाफ में मौजूद लोगो को बिल्कुल भी अच्छा नही लगा कि इस तरह से मेडिकल साइंस के आधार पर वे इस मासूम को मृत घोषित कर दें । स्टॉफ मे मौजूद आकाँक्षा, यशोदा और लीना नें डॉक्टर विकास से पुछे कि क्या कोई औऱ उपाय नही है सर ? तब विकास अग्रवाल नें उन्हे बताये कि CPR के अलावा और कोई उपाय नही है और मेडिसिन मे जो उन्हे देना चाहिये था वह दिया जा चूका है तब तक डॉक्टर नेम सिंग जी अंकित को ब्रेन डेड घोषित करने की कागजी कार्यवाही पूरी करना प्रारंभ कर चूके थे । इधऱ नर्सिंग स्टॉफ को अमित द्विवेदी और डोमन के रूप मे दो सहयोगी और मिल गए जो उनके साथ चेस्ट कंप्रेशन के लिये साथ मे सहयोग देने को तैय्यार हो गए क्योकि चेस्ट कंप्रेशन एक व्यक्ति  बडी मुश्किल से 10 मिनट ही कर पाता है क्योंकि उसमे काफी मेहनत और ऊर्जा लगती है । इन पाँचो नें 45 मिनट के बाद की जिम्मेदारी उठाए और फिर से चेस्ट कंप्रेशन देना शुरू दिये । नर्सिंग स्टॉफ की लगन देखकर डॉक्टर विकास अग्रवाल फिर से आईसीयू मे पहुंच गए और अंततः इन सभी की मेहनत 1 घण्टे से ज्यादा समय पर काम आई ..... अंकित की सांसे चलने लगी । उसकी धडकन लौटने लगी । पूरा नर्सिंग  स्टाफ खुशी से झूम उठा लेकिन डॉक्टर विकास को समझ आ गया कि उनकी जिम्मेदारी और बढ गई है । नर्सिंग स्टाफ ने जिस मेहनत से अंकित की सांसे ऊपर लाए थे अब आगे का काम डॉक्टर का था कि वह उन सांसो को वापिस ना जाने दें । 
                                                        डॉक्टर विकास के अनुसार ऐसे केस मे जब सांस वापिस आती है तो अक्सर मरीज कोमा मे चले जाता है और वह कब होश मे आएगा इसका कुछ पता नही होता , साथ ही मरीज के अंगो के खराब होने की संभावना भी बनी रहती है । इन सारी चुनौतीयों से जुझते हुए आखिरकार सुबह के 3 बजे अंकित को होश आ गया । सुबह के चार बजे उसकी सारी जांच करने के बाद जब अँकित के परिजनों को बताया गया कि अँकित अब बिल्कुल ठीक है तो किसी को भी यकिंन नही हुआ । सब भौंचक से एक दुसरे का मुँह देखने लगे और जबब समझ पडा कि डॉक्टर क्या कह रहे हैं तो अँकित की माँ खुशी के मारे सीधा आईसीयू की ओर दौडी । वहां पर नियमो को किनारे करके डॉक्टरों ने उसी समय अँँकित की माँ , पिता, बहनों  और मामा से मुकाता का प्रबंध करवा दिए । सुबह के 9 बजते बजते पूरे शहर मे यह बात आग की तरह फैल गई कि बीएम शाह अस्पताल मे एक मृत बच्चे को वापिस जीवनदान मिला । लोग एक दुसरे से पुछते फिरते रहे कि आखिर हुआ क्या था ? जो इस बात को सुनता हतप्रभ रह जाता । दैनिक छत्तीसगढ के रिपोर्टर संतोष मिश्रा जी को भी यह जानकारी मिली और हम दोनों एक साथ बीएम शाह पहुंचे जहाँ पर पूरी घटना का आँखो देखा हाल पता चला । पहले तो कानों को भी यकिंन नही हुआ कि क्या वाकई ऐसा हो सकता है ? फिर जाकर मिले अंकित से ... उसने देखते ही पुछा मुझे क्या हुआ था अंकल ? मुझको इतनी प्यास क्यो लग रही है ? उससे हम लोग क्या कहते .... सो हम लोग वापिस आ गए कई अनसुलझे सवाल को लेकर .... 
क्या जिस तरह से बीएम शाह के नर्सिंग स्टाफ और डॉक्टरों ने अदम्य मेहनत करके एक बच्चे की जान वापिस ले आए उस तरह का कार्य दुसरे अस्पताल वाले क्यों नही कर सकते ? 
यदि सचमुच अंकित के प्राण वापिस नही आते तो क्या घर वाले इस बात को समझते कि वास्तव मे उनके बच्चे की जान बचाने के लिए अस्पताल और स्टाफ नें कितनी मेहनत किए थे ?
इतनी बडी घटना का , किसी भी बडे मीडिया में नही आना क्या यह सही आचरण है मीडिया का,  कि वह इतनी सकारात्मक पहल को एक अस्पताल का विज्ञापन मात्र समझे ?
क्या हम और हमारा समाज इतनी अज्ञानता का शिकार है कि मात्र धडकन बंद हो जाने को हम मृत्यु समझकर अपनी और आयु जी सकने वाले प्रियजन का अंतिम संस्कार कर देते हैं ?
              
ऐसे औऱ भी कई अनसुलझे सवाल खडे हो सकते हैं हमारे सामने लेकिन बीएम शाह के डॉक्टरों ने जिस तरह का कारनामा कर दिखलाए हैं वह असंभव को संभव करने की तरह का कार्य है । मेडिकल साइंस मे अभी तक का सबसे लंबा CPR 45 मिनट का दर्ज है जबकि बीएम शाह नें 1 घण्टे 45 मिनट तक CPR करके मरीज की धडकन वापिस लाने मे  सफलता पाए हैं ।
जब डॉक्टर विकास से पुछे कि डॉक्टर साहब आप अंकित के जीवन बचाने का श्रेय किसे देना चाहेंगे .. तो उन्होने कहे कि सबसे पहले अपने नर्सिंग स्टाफ को उसके बाद मैनेजमेंट को और फिर ईश्वर को । यदि इन तीनों का सहयोग नही होता तो शायद हम लोग भी कुच नही कर पाते ।
तो क्या इतने बडे शब्द कोई साधारण डॉक्टर कह सकता है ? कदापि नही ,..., कोई दुसरा अस्पताल होता तो अभी तक वह पेड मीडिया के माध्यम से अपने अस्पताल का जोर शोर से प्रचार प्रसार कर डालता लेकिन यह अस्पताल चुपचाप केवल मानव सेवा कर रहा है पूरी मानवता के साथ ।
सादर नमन और धन्यवाद बीएम शाह अस्पताल , उसके स्टाफ और डॉ्कटरों को ।
आप डॉ्कटर विकास अग्रवाल जी का इंटरव्यूह यहाँ उपलब्ध है ।

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