Tuesday, July 8, 2014

नक्सल , सेना और सरकार


छत्तीसगढ  कांग्रेस के बडे नेताओं का एक साथ नक्सली हमले में सफाया कोई सामान्य घटना नही कही जा सकी । इस दरभा कांड ने पूरे देश की राजनीती को झकझोर कर रख दिया था । दरभा कांड से पहले आम जनता के मन मे यह भावना बैठी हुई थी कि नक्सली केवल पुलिस, सेना और निरीह जनता को ही मारते हैं , लेकिन इस घटना ने इतिहास और सोच को एक साथ बदल दी । इस घटना के बाद एक पक्ष के लोगों के सामने नक्सलियों का क्रूर चेहरा सामने आया जिसमे बताया गया कि नक्सली महिलाएं महेन्द्र कर्मा के शरीर को चाकूओं से गोद गोद कर मारी थी और शरीर मे गोलियो के तो तीन लेकिन चाकूओं के 70 से ज्यादा जख्म थे । अब महेन्द्र कर्मा की मौत का दुसरा पक्ष जो नक्सलीयों की नही ग्रामीणों की बात करता है और कहता है कि महेन्द्र कर्मा के द्वारा सलवा जुडुम की आड मे स्थानीय आदिवासीयों के ऊपर भारी अत्याचार किया गया था तथा कई लडकियां सलवा जुडुम समर्थकों की हवस का शिकार बनी थी और उन्ही शिकार महिलाओं ने महेन्द्र कर्मा को इस प्रतिशोध भरे तरिके से दुर्दांत बदला ली हैं  । 
                                                      नक्सलियों का यह तौर तरीका सभ्य समाज को कतई रास नही आ सकता और ना ही समाज या कानून इसे स्वीकार करेगा किंतु घटना तो घटी है । एक दुसरे पर दोषारोपण चलता रहा और चल भी रहा है किंतु सेना ने दोषारोपण से स्वयं को दूर रखते हुए अपनी सटिक रणीनीतीक कार्यवाही जारी रखी जिसकी वजह से बस्तर कुछ हद तक शांत हो गया ।                 
                  एक बात जो मुझे याद पडती है कि कांग्रेसी नेताओं के काफिले पर हमले के कुछ दिन पहले महेन्द्र कर्मा के कई साथीयों को छत्तीसगढ हाईकोर्ट क द्वारा बलात्कारों के मामले से बरी कर दिया गया था । इस बात का उस घटना क्या संबंध हो सकता है इस पचडे मे मैं नही पडना चाहता क्योंकि बात केवल हवा हवाई ही होती है । नक्सलियों से मिलने का दावा करने वाले पत्रकार भी खुलेआम यह नही कह सकते कि मैं नकस्लियों से उनकी समस्याएं जानकर आया हूँ क्योंकि तब वह नक्सल समर्थक माना जाता है । आज बस्तर के आदिवासी अपने जल जंगल जमीन के हक मे अकेले लड रहे हैं यह सोचकर कि शायद प्रवीरचंद भंजदेव पुर्नजन्म लेकर उनकी रक्षा कर सके और अपना जंगल बचा सके ।
                           नक्सल क्या है, नक्सली कौन है के बजाय हमे अपनी सेना का मनोबल बढाना होगा जो धुर नक्सली क्षेत्रों मे जाकर नक्सली मुक्त जंगल बनाना चाह रहे हैं । वैसे मुझे एक सीआरपीएफ के जवान के साथ घटी घटनाक्रम भी ध्यान आ रही है जो मोहला मानपुर क्षेत्र मे हुई थी जिसमे उक्त जवान की जान नक्सलियों ने यह वादा करने पर बख्शे थे कि वह वापस जात ही सेना की नकरी छोड देगा और उसने वैसा ही किया भी था । सेना के सामने सबसे बडी जिम्मेदारी यह है कि वह नक्सलियों के खात्मे के अलावा आदिवासीयों के पुर्नवास के लिये भी योजनाएं चलाए ताकि मुहं मे गमछा बांधे नक्सली औऱ उसी गमछे को सिर पर लपेट कर हाथ जोडकर खडे ग्रामीण मे वह अंतर समाप्त कर सके ...................
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जो पूरी तरह से असंभव है क्योंकि लडाई तो नक्सल,  सेना  और सरकार की है लेकिन नाश आदिवासीयों के जल जंगल जमीन का हो रहा है ।