Wednesday, April 20, 2011

बुरे फंसे अन्ना हजारे

आज अमर सिंह की पत्रकार वार्ता में शिकार भले ही शशि भूषण व प्रशांत भूषण हों  मगर निशाने पर अन्ना हजारे दिख रहे थे ।  अन्ना हजारे नें अपने अनशन के समय शशि भूषण को ईमानदार बताते हुए जन लोकपाल कमेटी में उन्हे उपप्रमुख की नियुक्ति दिलवाए थे ।
                     कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने शांति भूषण और उनके बेटे को नोएडा के पास जमीन दिए जाने पर सवाल उठाते हुए उनसे खुद ही लोकपाल बिल की ड्राफ्ट कमेटी से अलग हो जाने की मांग की है. नया विवाद इन खबरों के सामने आने के बाद उठा जिसके मुताबिक शांति भूषण को उत्तर प्रदेश सरकार ने 10 हजार स्क्वेयर मीटर जमीन आवंटित की जिनमें से हर एक की कीमत साढ़े तीन करोड़ है.   ताजा मामले के अनुसार - शांति भूषण के बेटे जयंत भूषण उत्तर प्रदेश सरकार के खिलाफ नोएडा पार्क में मूर्तियां लगाए जाने के खिलाफ कोर्ट गए थे. उनका कहना है कि इसमें विवाद की वजह नहीं थी. नए विवाद पर प्रतिक्रिया देते हुए शांति भूषण ने कहा है, कुछ  "भ्रष्ट और महत्वपूर्ण"  राजनेता उन पर लगाए गए आरोपों के पीछे हैं क्योंकि कमेटी में उनके (शांति भूषण)  रहते "नरम" लोकपाल बिल तैयार करना मुमकिन नहीं होगा.
                              यहां एक दिलचस्प पहलू देखिये -  अन्ना हजारे नें सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखे कि 'पिछले दो दिनों में जिस तरह से सिविल सोसायटी के लोगों के खिलाफ खुलकर दुष्प्रचार किया जा रहा है, वह चिंता का विषय है।' उन्होंने कहा है कि ऐसा लग रहा है जैसे लोकपाल बिल की ड्राफ्टिंग प्रक्रिया को पटरी से उतारने के लिए सारे भ्रष्ट लोग एकजुट हो गए हैं। दिग्विजय सिंह का नाम लिए बिना अन्ना ने कहा,'कांग्रेस के एक महासचिव बयानबाजी कर रहे हैं और मुझे लगता है कि इस तरह की बयानबाजी के लिए उन्हें पार्टी का सपोर्ट मिल रहा है। ज्यादातर बातें जो कही जा रही हैं वे गलत हैं। क्या आप (सोनिया) इन बयानों से सहमत हैं?'
                         अन्ना की च्ट्ठी के जवाब में सोनिया गांधी की ओर से पत्र आया ( सोनिया जी को लिखने की जरूरत नही पडती ) जिसमें कहा कि उन्होंने कभी भी कीचड़ उछालने और बदनाम करने की राजनीति पर यकीन नहीं किया और न ही वे ऐसे किसी भी प्रयास का समर्थन करती हैं। हजारे ने सोनिया गांधी को एक पत्र लिखकर कहा था कि कुछ कांग्रेस के नेता भ्रष्टाचार के खिलाफ छेड़े गए आंदोलन की धार कुंद करने के लिए सुनियोजित तरीके से मुहिम चला रहे हैं , सोनिया ने कहा कि उन्हें (अन्ना हजारे को) उनकी भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई को लेकर नीयत पर शंका नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार और घूसखोरी से लड़ने की सख्त आवश्यकता है। वह मजबूत लोकपाल के पक्ष में हैं, जो संसदीय प्रणाली के नियमों के अंतर्गत कार्य करे।
                                                       मजे की बात ये है कि सुर दिग्गी राजा के भी बदल गये लेकिन इन शातिराना चालों के बीच अमर सिंह प्रकट हुए और दिग्गी राजा की कही बातों को पत्रकार वार्ता में देश के सामने रख दिये । शब्द दिग्गी राजा के थे और मुंह अमर सिंह का था । अब अन्ना हजारे के साथ साथ सारा देश सन्न है कि उन्हे क्या जवाब दिया जाए क्योंकि कानून बनाने वाले लोग जानते हैं कि किसी भी बात को चाहे वो झूठी ही क्यों ना हो साबित करने में सालों लग जाते हैं ।
                                                         इस शातिराना चाल में नुकसाल केवल दो लोगों का होगा एक अन्ना हजारे का और दुसरा .... मेरे देश का । इसलिये अब हमें ये सोचना है कि अमर सिंह की कांग्रेसी जुबान को कैसे खारिज करवाया जाए ।





Sunday, April 17, 2011

नौटंकी बेद करो दिग्गी राजा ।

दिग्गी राजा उर्फ दिग्विजय सिंग बडे अफसोस के साथ आपके नाम के साथ का सम्मनसूचक शब्द जी को हटाना पड रहा है । जरा सोचकर देखो कि आप किस पद पर बैठ कर क्या क्या कह रहे हो । लगता है कांग्रेस महासचिव का पद देकर गांधी परिवार ने आपको खरीद लिया है । अपने पदमोह से बाहर निकलो दिग्गी राजा और अपनी तमाम नौटंकी बाजी बंद करते हुए जनता को साफ साफ बतलाओ कि तुम्हारी सरकार काला धन वापस लाने के लिये क्या कर रही है । वैसे भी जनता अंधी नही है और दिल्ली की सुगबुगाहट सारे देश में धीरे धीरे फैल रही है कि हमारे देश में शेयर बाजार और वायदा कारोबार के जरिये  बाहर के काले धन को धीरे धीरे निवेश किया जा रहा है और मुनाफे के रूप में उसे देश में ही सफेद किया जा रहा है ।
                                           रामदेव बाबा से पूछो कि दस साल में उनके पास इतना पैसा कैसे आया पर पहले आप बताएं कि सारे नेता करोडपति से अरबपति कैसे बन रहे हैं । आप ही बता दो कि आपको सोनिया राहुल की गुलामी में ही अपनी राजनीती क्यो सुरक्षित लगती है । जो आप कह रहे हैं मैं भी उन्ही बातों का जवाब ले रहा हूँ । हमारे देश के अधिकतर रक्षा  सौदे इटली से ही क्यों हो रहे हैं जबकि इटली कोई प्रख्यात हथियार उत्पादक देश नही है । अब बातों को लंबा ना करके केवल एक बात पुछुंगा कि आप ही बताएं कि काला धन कब आएगा ।

Friday, April 15, 2011

क्रूर प्रशासन की वेदी 4 लोगों की बलि ।

एक परिवार में माँ सहित तीन बहनों नें केवल इस लिये अपनी जिंदगी खत्म कर ली ताकि उनके परिवार का इकलौता बेटा अपने जीवन का शेष भाग सुखपूर्वक बिता सके । यह दर्दनाक घटना कोई अचानक ही नही घट गई बल्कि इस पूरे परिवार नें अपने को लगातार चार दिनों तक खुद को कैद  करते हुए, मीडिया के समक्ष अपनी पूरी बातें रखते हुए और सब कुछ होने के बाद भी अपनी मांगो को पूरा ना होते देखने के बाद जहर खाकर अपनी ईहलीला समाप्त कर ली । ( संलग्न विडियों में महिला विप्र समाज की ममता शुक्ला पूरे केस पर प्रकाश डालते हुए )
                                                  सेक्टर-4, सडक 34 , भिलाई में हुए इस ह्दयविदारक घटना में तीन अमानवीय पहलू उभर कर सामने आए हैं
1) भिलाई स्टील प्लांट का अमानवीय प्रबंधन 2) पुलिस प्रशासन की अदूरदर्शीता 3) राज्य शासन की घोर लापरवाही ।
1. भिलाई स्टील प्लांट के अधिकारीयों ने 17 साल से काबिज पूर्व बीएसपी कर्मी  स्व. एमएल शाह जो बीएसपी के औद्योगिक संबंध विभाग में उप प्रबंधक थे कि तीन दिसंबर 1994 को रहस्यमय ढंग से रेल पटरी पर मृत मिले थे । शाह नें अपनी डायरी में उन लोगों के नाम लिखे हुए थे जिनसे उन्हे अपनी जान को खतरा था । उनकी मौत के बाद तात्कालिन नियमों के अनुसार मृतक के पुत्र सुनील कुमार को अनुकंपा नियुक्ति मिल जानी थी लेकिन बीएसपी के अधिकारी उसे नौकरी ना देकर केवल आश्वासन देते रहे । इसके बाद 1995 के नियमो का हवाला देते हुए बताया गया कि  अनुकंपा नियुक्ति का प्रावधान हटा दिया गया है जबकि सुनील के पिता की मौत 1994 में हुई थी और उस समय के नियमों के आधार पर सुनील की अनुकंपा नियुक्ति का आधार बनता था ।
                                    जब सुनील नें अपने परिवार को चलाने के लिये नौकरी के एवज में पचास लाख रूपयों की मांग की, जो की वर्तमान रेटिंग के आधार पर सही है  तो तत्काल बीएसपी प्रबंधन नें सुनील का परिवार बैकफुट पर जैसी खबरों का प्रचार करवा दिया ।
                     एक ओऱ बीएसपी प्रबंधन अपने ही मृत कर्मी के परिवार के लिये उसके अधिकार को  देने में असमर्थ बता रहा था तो वहीं दुसरी ओर लाखों रूपये खर्च करके हेमा मालिनी के बैले डांस का आयोजन सेक्टर-1 में किया जा रहा था जिसे मंगलवार को सुनील के परिवार द्वारा आत्महत्या कर लेने के बाद रद्द करा दिया गया  । अब बीएसपी प्रशासन अपने को बचाने के लिये सुनील को फंसाने का कुत्सिक षणयंत्र रच रहा है । उस पर अपने परिवार को आत्महत्या करने के लिये उकसाने सहित कई मामले बनाने की तैय्यारी चल रही है ।
2). - इस मामले में पुलिस प्रशासन द्वारा घोर लापरवाही की गई । परिवार को केवल आश्वासन ही दिया जाता रहा । एस.पी. अमित कुमार द्वारा हमेशा यही कहा जाता रहा कि हम मामले को देख रहे हैं जबकि ऊपर सुनील का बयान सुनें । इसके अलावा सोमवार की रात को जब मैं सुनील के घर गया तो सुनील की माँ बताते बताते रो पडी की पुलिस वाले आकर कहते हैं कि मरने वाले लोग सीधे मर जाते हैं तुम लोगों के जैसे नौटंकी नही करते .. इसका क्या मतलब है । सुनील अभी जिंदा है और अस्पताल में है पुलिस उसका बयान लेने को आतुरता दिखा रही है लेकिन उन अपराधियों को नही पकड रही जिनके नाम सुनील के पिता ने अपनी डायरी में लिखे थे । अभी तक पुलिस नें बीएसपी प्रशासन के खिलाफ कोई अपराध दर्ज नही किया है जबकि बीएसपी प्रशासन पर मामला बनता है लेकिन इस मामले का सबसे दुःखद पहलू ये है कि पूरा पुलिस विभाग बीएपी की शरण में ही पडा हुआ है और जैसा बीएसपी अधिकारी चाह रहे हैं एस.पी. महोदय वैसा करवा रहे हैं । अभी तक सुनील को सेक्टर-9 हास्पिटल में रखा गया है जो कि भिलाई इस्पात संयंत्र का अश्पताल है और यहां के डॉक्टरों को तनख्वाह बीएसपी से मिलती है सो जाहिर है कि जैसा प्रबंधन चाहेगा वैसा ही वहां के डॉक्टर अपनी रिपोर्ट देंगे । जबकि एसपी अमित कुमार को चाहिये था कि सुनील को तत्काल सेक्टर9 हास्पिटल से निकाल कर दुर्ग के सरकारी अस्पताल में इलाज के लिये रखा जाता ताकि इलाज व रिपोर्ट निष्पक्ष बन पाती । हो सकता है कि सुनील नें सल्फास की कुछ गोलियां निगल भी ली हों लेकिन असप्ताल इस बारे में मौन साध ले तो एक हफ्ते बाद कौन सा डॉक्टर से बता पाएगा कि सुनील नें जहर खाया था या नही । जिन जिम्मेदारियों के लिये सुनील 17 साल से लड रहा था अब वे जिम्मेदारी सुनील पर नही रही तो क्या ऐसा नही हो सकता कि सुनील अब अपराध की राह  अपना ले।
3.- इस मामले में राज्यशासन नें भी अपनी लापरवाही दिखलाने में कोई कसर बाकि नही छोडी । भिलाई इस्पात संयंत्र को केन्द्र की जवाबदारी बताते बताते मुख्यमंत्री ये भूल गये कि यह संयंत्र छत्तीसगढ राज्य का गौरव कहा जाता है । सुनील का परिवार पाँच दिनों तक अपने को कैद करके रखे रहा और राज्य के किसी भी मंत्री तो छोडिये कलेक्टर तक नही पहुंचे । सुनील की मौत नही हुई लेकिन अपनी आँको के सामने पूरे परिवार को मृत देखकर उसकी क्या हालत हो रही होगी इससे राज्यशासन को कोई दरकार नही है । मुख्यमंत्री अपने राज्य के एक इस्पात संयंक्ष को संभाल नही पा रहे हैं जबकि यहां खुलेआम दुसरे राज्यों के लोगों को पैसे लेकर के नौकरी लगाई जा रही है । चाहे वह बीएसपी हो या फिर जे.पी. सीमेंट दोनो जगहों का यही हाल है । स्थानीय लोगों की उपेक्षा की  जा रही है औऱ आसपास के लोगों को सारा प्रदूषण झेलना पड रहा है । यहां पर एक जवाबदारी से मुख्यमंत्री अपना पल्ला झाड सकते हैं बाकि मामले में क्या कहेंगे उनसे पुछने वाला कोई नही है । धन्य है रमन सरकार ।

Tuesday, April 12, 2011

भिलाई में पूरे परिवार नें जहर खाया... चार की मौत

भिलाई 12 अप्रेल । स्टील प्लांट में अनुकंपा नौकरी नहीं मिलने से तंग आकर युवक समेत पूरे परिवार ने जहर खा लिया है । उन्हें गंभीर हालत में बीएसपी के सेक्टर-9 हास्पिटल में भर्ती कराया गया जहां युवक की  माँ और तीन बहनों की मौत हो गई है ।

                     सडक 34,  सेक्टर 4 निवासी सुनील कुमार ने पिता की मौत के बाद अनुकंपा नियुक्ति के लिए बीएसपी में आवेदन दिया था। लेकिन 17 साल बाद भी उसे नौकरी नहीं मिली। उसने बीएसपी प्रबंधन को कई चिट्ठी लिखी, पर कोई फायदा नहीं हुआ। चार दिन पहले उसने बीएसपी प्रबंधन द्वारा उसके घर की लाइट काटने तथा जबरन घर से बाहर निकालने के प्रयास के विरोध में स्वयं को परिवार सहित कैद कर लिया था । चार दिनों तक पूरा परिवार  कमरे से बाहर नहीं निकला था। बीएसपी प्रबंधन ने उसे मनाने की कोशिश की। ठोस पहल नहीं होने पर युवक ने अपने परिवार के चार सदस्यों समेत जहर खा लिया। पड़ोसियों ने उन्हें अस्पताल में दाखिल कराया। चारों को आईसीयू में भर्ती कराया गया है ।
                                   अचानक हुए इस घटनाक्रम से प्रशासन भी सकते में आ गया औऱ आनन फानन मामले को दबाने के प्रयास होने लगे किंतु मिडिया द्वारा निष्पक्ष भाव से कार्य करने के कारण उन्हे अपना कुप्रयास बंद करना पडा । माँ मोहिनी साहू व तीनों बहनों रेखा शोभा औऱ शीला की मौत के बाद सुनील गुप्ता सदमें की हालत में है  और उसकी हालत भी चिंताजनक बताई जा रही है ।
बस वादा करना भर जानती है हमारी सांसद ः- भाजपा सांसद सरोज पाण्डेय नें कल सुनील साहू से फोन पर चर्चा करके कहीं थी की मैं शाम तक पहुंच कर सबकुछ ठिक कर दूंगी और आपको इंसाफ मिलकर रहेगा  लेकिन शाम को स्वयं ना आकर अपनी  प्रतिनिधी सीता मिश्रा को उनके पास बात करने के लिये भेज दी जिससे पूरा परिवार बेहद आक्रोशित हो गया था और उसके बाद उन लोगों ने मंगलवार को बाहर आने की बात कहते हुए सभी से बातचीत बंद कर दिये ।
                           इस मामले में मैं स्वयं कल रात को सुनील से मिलने पहुंचा था । रात तकरीबन 9 बजे मैने उससे चर्चा की की आपको ऐसा करने से क्या मिलेगा तो सुनील की माँ रोते हुए कहने लगी की इस तरह से हमें जीकर क्या मिलेगा हालांकी थोडी देर बाद सुनील नें संयमित होते हुए मुझसे कहा कि डब्बू भाई कल सुबह आप जरूर आइयेगा ... लेकिन मेरा दुर्भाग्य की अचानक परिजन की तबियत ज्यादा खराब होने के कारण सुबह 7 बजे मैं रायपुर चला गया और अभी लौटते ही पूरे घटनाक्रम को लिख रहा हूँ ।
बी.एस.पी. का अडियल रूख - आज चार मौतों से घबराए बीएसपी के एम. डी.  वी. के. नें घटनाक्रम के प्रति दुःख जाहिर करते हुए कहा कि प्रबंधन सुनील को नौकरी देने को तैय्यार था लेकिन कल रात की चर्चा में सुनील नें मुझे साफ बताया था कि बी.एस.पी. के अधिकारी तो उल्टा उन्हे  आग लगा लेने की बात करते हैं और पुलिस भी परेशान कर रही है । 
इस मामले में वैशाली नगर विधानसभा के विधायक भजन सिंह निरंकारी महापौर निर्मला यादव नें रविवार को सुनील से मिलने के बहाने अपनी राजनीतीक रोटी सेंकने पहुंचे थे क्योंकि भजन सिंह का वह निर्वाचन क्षेत्र नही है वो केवल ये जताने पहुंचे थे कि उनके बगैर महापौर कुछ नही करती ।
राज्य शासन भी दोषी - क्या इस मामले में मुख्यमंत्री का कोई फर्ज नही बनता था ? राज्य शासन से केवल एक पुलिस मित्र ममता शुक्ला पहुंची थी वह भी कोर्ट कचहरी की भाषा में परिवार को समझाइश देकर चली गईं । आज इस दुःखद घटना के बाद सारे भिलाई शहर में मातम सा छा गया था जबकि अधिकारीयों के चेहरे की हवाइयां किसी बडे उपद्रव का संकेत का आभास दे रही थी ।
सेक्टर 9 हास्पीटल में आज जनता का रोष खुलकर सामने आ गया और पुलिस को भीड संभालने में खासी मशक्कत करनी पडी ।
                                         खैर .......       अब जनता की बारी है देखें वह इस मामले को क्या तुल देती है ।




Thursday, April 7, 2011

देश में बजा क्रांति का बिगुल

काम नही आई सचिन पर खेली गई रणनीती ।

जी हां मैं बिलकुल सही हूँ । जब तक विश्वकप चला रहा था सोनिया राहुल प्रधानमंत्री हर कोई अपने को क्रिकेट प्रेमी दर्शा रहा था । क्रिकेट की आड में सरकार बचती चली गई क्योंकि जनता का ध्यान विश्व कप पर था । विश्व कप खत्म होते ही इनकी योजना थी सचिन तेंदुलकर को  भारत रत्न देने के लिये  बवाल मचाया जाए और जनता सचिन को भारत रत्न दिया जाये या ना दिया जाए इस बहस में लग जाए तब तक आई.पी.एल. मैच चालू हो जाएंगे और इस तरह से फिर सरकार को एक दो माह तक राहत मिल जाएगी और तब तक तो जनता बहुत हद तक महंगाई और भ्रष्टाचार का मामला भूल जाएगी और अन्ना हजारे का पूर्व नियोजित अनशन फ्लॉप हो जाएगा । लेकिन इस जगह पर हजारे जीत गए । सरकार की योजना ध्वस्त हो गई और सारा देश एक नई क्रांति की याद दिलाता हुआ सडकों पर उतर आया । अब सरकार की जान सांसत में अटक गई है । वह इंदिरा की तरह इमरजेंसी नही लगा सकती क्योंकि अन्ना हजारे की मांग लोकपाल विधेयक बहुत ही मामूली सी मांग है लेकिन इसका प्रभाव बहुत ही व्यापक है ।
                                            अन्ना के समर्थकों ने उमा भारती को वापस भगा कर एक नई दिशा बतलाई की अब उसे किसी भी नेता का साथ नही चाहिये औऱ अब वह एक आम आदमी के साथ इस नई लडाई को लडेगी । कांग्रेस की सांस अटक गई है क्योंकि वह जानती है कि इस मामले मे सेना भी जनता के साथ है और पुलिस प्रशासन इन नेताओं से त्रस्त हो चुका है । सभी जगह इस आंदोलन को जिस तरह का व्यापक समर्थन मिल रहा है उससे यह अंदाजा लग चुका है कि अब जनता बरगलाने वाली नही है । इसका एक नमूना तब देखने को मिला जब हजारे के सहयोगी अरविंद केजरीवाल नें कपील सिब्ल को नोटिफिकेशन को लेकर करारा सवाल दागा । अरविंद केजरीवाल  के इस कथन पर कि प्रधानमंत्री के प्रेस को बयान देने से कुछ नही होगा हमें कानूनी तौर से नोटिफिकेशन चाहिये  से सारा देश उसका मुरीद हो गया और एक झटके मे केजरीवाल सचिन से बडे ओहदे पर दिखने लगे । जनता के सामने पहली बार ये सच्चाई आई की अभी तक प्रधानमंत्री के बयानों पर कोई कार्यवाही इसलिये नही होती थी क्योंकि वह केवल जबानी होती थी कानूनन कुछ नही होता था ।
                                        आज स्व. राजीव दीक्षित जी की बहुत याद आ रही है । उन्होने जिस आजादी बचाओ आंदोलन की राह जनता को दिखलाई थी वह आज साकार हो रही है । सचमुच हमें इसी तरह की आजादी चाहिये जिससे हम देश के घुनों को मार सकें ।
                    मैं आज सच्चे मन से राजीव दीक्षित जी के चरणों में श्रद्धा के फूल करते हुए ये सौगंध उठाता हूँ कि जब भी आवश्यकता होगी अपने खून का एक एक कतरा देश की क्रांति को समर्पित कर दूंगा ।

Wednesday, April 6, 2011

बिजली के खेल से किसानों की तबाही ।

पावर हब प्रदेश में पावर का खेल, बलौदा बाजार में ब्लड कैंसर के मामले बढे ।  

जांजगीर-चांपा, कोरबा, रायगढ, सरगुजा, अंबिकापुर जैसे वनाच्छादित जगहों पर सरकार नें पावर प्लांट लगाने की अनुमति क्या दी वहां के निवासियों का जीना मुहाल हो गया है । कोरबा में लैंको अमरकंटक पावर प्लांट के एक उदाहरण से आप सभी जगहों की स्थिति का आंकलन कर सकते हैं । मैं कल रात को इ क्षेत्रों का चार दिवसीय दौरा निपटा कर आया हूँ । इस प्लांट को शुरूआत में 300-300 मेगावाट के दो प्लांट लगाने से हुई थी लेकिन अगले 5 साल में इसने अपनी क्षमता 1960 मेगावाट कर ली है । इस कंपनी के कारनामें देखें - इसे पानी देने के लिये हसदेव नदी  पर एनीकेट बनाने का प्रस्ताव पास हुआ और कार्य मिला शांति इंजीकॉन को जिसके प्रबंधक स्थानीय विधायक के पुत्र हैं ।  एनिकेट बनाने के लिये शांति इंजीकॉम द्वारा कुदुरमाल गांव में पत्थरों के लिये जमकर ब्लास्टिंग की गई जिससे वहां के निवासियों के 150 से ज्यादा मकान क्षतिग्रस्त हो गये । इसी जगह पर सतगुरू कबीर की मजार स्थित है जो इस विस्फोट से क्षतिग्रस्त हो गई है ।   ... एक ओर सरकार कबीर साहब के लिये बडे बडे आयोजन करती है वहीं मजार के क्षतिग्रस्त होने पर नजरअंदाजी की दोगली नीती से स्थानीय लोगों की भावनाएं आहत हुई है । दिसंबर से जनवरी तक अमीत जोगी द्वारा लगातार आंदोलन चलाया गया जिसमें 15 दिनों का आमरण अनशन भी हुआ तब कहीं जाकर कलेक्टर द्वारा शांति इंजीकॉम को ब्लासटिंग रोकने का आदेश जारी किया गया ।

                                           ये बात थी एक एनीकेट की          अब जरा लैंको अमरकंटक की कारगुजारी पर नजर डालें- यह कंपनी स्थानीय लोगों को रोजगार, पर्यावरण की कई योजनाओं, स्कूल, अस्पताल के साथ साथ किसानों को अधिकतम मुआवजा तथा परिवार के एक व्यक्ति को रोजगार देने जैसी लोकलुभावन बातों के साथ अपना काम शुरू किया । आज हालात ये हैं कि परिवार तो छोडिये स्थानीय लोगों को भी कंपनी रोजगार नही दे रही है । नदी से होकर खेतों को तीन मीटर गहरा खोदते हुए जो पाइप लाइन बिछाई गई उन खेतों के किसानों को जो मुआवजा मिला उससे तो वे खेत की मिट्टी भी बाहर नही फेंकवा पाए । कंपनी का कहना था कि हम तो केवल गढ्ढा खोद रहे हैं जमीन अधिग्रहित नही कर रहे हैं सो क्यों मुआवजा दें । आसपास के पूरे पेडों को काट दिया गया ताकि वाहन निर्बाध रूप से आना जाना कर सकें । वृक्षारोपण की कोई श्रंखला तैय्यार नही की गई जबकि केंद्रिय पर्यावरण मंत्रालय के अनुसार एक पेड के बदले न्यूनतम चार पेड लगाने का नियम है ।
                                           लगभग यह हाल सभी पावर प्लांटो का है । समस्या यहीं पर खत्म ना होकर तब शुरू होती है जब पानी की किल्लतें होना चालू हो जाती है । साफ पानी ना होने के कारण (जमीन में ब्लास्टिंग होगी तो क्या अमृत मिलेगा ) पीलीया और हैजा जैसी बीमारी तो आम है अब हाथी पांव भी इन बीमारीयों की दौड में शामिल हो गया है । सबसे चिंताजनक स्थिति बलौदाबाजार की है जहां लगातार बढते उद्योग , गिरते जलस्तर, घटते वन और बढते प्रदुषण के कारण ब्लड कैंसर की बीमारी तेजी से फैल रही है । इस छोटी सी जगह से 3 माह में 4 से 5 केस ब्लड कैंसर के आए हैं जिनमें से एक पत्रकार भी है जो पैसे ना होने के कारण मुंबई से वापस आ गया है
                                                    जन जागरण का एक अनूठा नजारा चांपा मे देखने को मिला । यहां के युवा अलग अलग दलों से संबंध रखते हैं किंतु पर्यावरण के मसले पर एक जुट होकर आंदोलन करते हैं । यहां पर कांग्रेस, भाजपा, एन.एस.यू.आई. और विद्यार्थी परिषद के सभी सदस्यों नें अपना एक अलग सर्वदलीय मंच बना रखें है और जब कभी स्थानीय मसले पर आंदोलन करता होता है तो सभी सदस्य इस एक मंच से अपना आंदोलन चलाते हैं । इसके क सदस्य आशईष चौधरी भी है जो बताते हैं कि किसी तरह से स्थानीय लोग राजनीती से दूर होकर अब अपने हित के लिये लड रहे हैं । ये लोग जनजागरण करते हैं और लोगों को हिदायत देते हैं कि किसी भी तरह के प्रदुषण होने की दशा में तत्काल सबको चेतावनी दें औऱ मजबूती से उसका विरोध करें ।
                                                  लेकिन इस दौरे पर  एक दुःखद पहलू ये भी दिखा कि प्रशासन और कंपनी के साथ साथ स्थानीय प्रिंट मिडिया भी आमजनों के हितों की अनदेखी कर रहा है ।