Sunday, March 24, 2013

छत्तीसगढ- कैंसर पीडित की वेदना संयुक्त राष्ट्र परिषद तक पहुंची ।



 ये मेडिकल सर्टीफिकेट पी.जी. कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय , बिलासपुर के प्राध्यापक डॉ. एस.सी. शुक्ला का है जिन्हे मेडिकल डॉक्टरों के द्वारा चेकअप करने के पश्चात कोशिका कैंसर से पीडित पाते हुए उन्हे यह सर्टिफिकेट दिया था । इस मेडिकल सर्टिफिकेट को जारी करने की तिथी है 7 अप्रेल 2012 । यह एक वर्ष की वैधता वाला है तथा इसमें स्पष्ट उल्लेख है कि छ.ग. शासन कि परिपत्र क्रमांक 2-39/93/17 मेडि. 4 दिनांक 10.11.1995 के अनुसार लंबे समय तक चलने वाली बीमारियों के उपचार में द्वितीय अभिमत से छूट दी गई है । 
                             अब जबकि इन्हे कैंसर है औऱ इनका नियमित इलाज अपोलो अस्पताल में चल रहा है, इसके बाद भी छत्तीसगढ शासन के उच्च शिक्षा विभाग के द्वारा 30 जुलाई 2012 को स्थानांतरण आदेश दे दिया जाता है और इनका ट्रांसफर बिलासपुर से बाहर शास. महाविद्यालय पंडरिया, जिला कबीर धाम कर दिया गया । स्थानांतरण के बाद भी सरकार के अन्याय की इंतेहा खत्म नही हुई , बल्कि उसी सूची में इनकी धर्म पत्नी श्रीमती अर्चना शुक्ला का स्थानांतरण भी शास. राजीव गांधी महाविद्यालय लोरमी जिला मुंगेली कर दिया गया । नियमों के अनुसार यदि पति पत्नी एक ही विभाग में कार्यरत हों तो उनका स्थानांतरण एक साथ- एक ही स्थान पर किया जाता है जबकि इस मामले में नियमों की पूरी तरह से अनदेखी की गई है ।
                      डॉ. एस.सी. शुक्ला की पत्नी व इनके छोटे भाई कमल शुक्ला के द्वारा कई बार मुख्य सचिव, शिक्षा विभाग सहित मुख्यमंत्री के पास निवेदन दिया गया , यहां तक की मुख्यमंत्री के जनदर्शन में भी यह अपनी बात रख आए किंतु 7-8 माह बीत जाने के बाद भी सरकार द्वारा कोई सुध नही ली गई ।
                   
                       डॉ. शुक्ला का मामला इनके छोटे भाई कमल शुक्ला के द्वारा IHRO छत्तीसगढ के सामने रखा गया । मामले की शुरूआती बातों को जानने के बाद यह समझ में आया कि सरकार अपना रवैय्या नही बदलने वाली है अतः मेरे द्वारा यह मामला अपने मुख्यालय के समक्ष भेज दिया गया ।
                             मुख्यालय द्वारा मांगी गई सारी जानकरी उन्हे उपलब्ध करा दी गई जिसके बाद IHRO के राष्ट्रीय सचिव अनुराग ज्योति के द्वारा मामले को एमनेस्टी इंटरनेशनल, राष्ट्रीय  मानवाधिकार आयोग नई दिल्ली भेजा गया  , किंतु मामले की गंभीरता और संवेदनशीलता को देखते हुए इसकी एक प्रति संयुक्त राष्ट्र मानव अधिकार परिषद के मुख्यालय जिनेवा , स्विटजरलैंड  भी भेज दी गई है ।  संभवतः पूरे छत्तीसगढ की यह पहली शिकायत है जो संयुक्त राष्ट्र मा.अ. परिषद को भेजी गई है किंतु यही एक शिकायत पूरे छत्तसीगढ के लोगों को उनके मानव अधिकार के बारे मे जागृत करने के साथ साथ सरकार को भी चेतावनी दे सकती है कि लोकतंत्र की सरकारों को विश्व समुदाय के बनाये नियमों के अनुसार चलना चाहिये अन्यथा भविष्य में इसके दुष्परिणाम झेलने पड सकते हैं ।