Thursday, December 5, 2013

छत्तीसगढ मे बदलेगा राज- कारण है ज्ञात ।

देश की पांच विधानसभा चुनाव मे अंतिम भाग के रूप मे दिल्ली वासियों ने अपना योगदान दिये हैं । 5 बजे चुनाव का दौर खत्म होते ही सभी चैनलों ने ताबडतोड एक्जिट पोलों की बरसात कर दिये । किसी ने भाजपा को 4 राज्यों मे जिताया तो किसी ने उलझन मे डाल दिया । लेकिन हम तो ठहरे छत्तसीगढिया सो बात करेंगे अपने छत्तीसगढ की । छत्तीसगढ मे कई महान विभूतियां है जो परिणाम को स्पष्टतः भाजपा के पक्ष में बता रहे होंगे तो कुछ कांग्रेस को 70 सीटों पर जीत दिलाने की बात करेंगे और कुछ होंगे जो कहेंगे हमारे बिना सरकार नही बनेगी । तो ... जैसा की भाजपा को जिताने वाले कहते हैं कि भाजपा की सरकार बन रही है तो उनकी बातें आगे करना ही बेमानी है क्योंकि वर्तमान मे उन्ही की सरकार है इसलिए हम उन्ही की सरकार बनेगी मान लेते हैं ।
कांग्रेस के लोगों ने तो कांग्रेस को 70 सीटों पर जीतने का दावा ठोंक दिये हैं तो उनकी बात करना भी व्यर्थ है । ..। तो अब बचते हैं हम जैसे वो लोग जो कहते है कि हमारे बिना सरकार नही बनेगी .... तो किस कारण से कहते हैं ये बात ...
  •  सबसे पहले बात करते हैं प्रदेश के मुखिया डॉ. रमन सिंह जी की - ये भाजपा का राज पाठ 10 सालों तक संभाले हैं और जनता के बीच चाऊर वाले बाबा बन कर अवतरित हुए । इनके राज मे प्रदेश का विकास हुआ है , सडकों का विस्तारीकरण हुआ , प्रदेश के सभी जिलों का विद्युतिकरण हो गया , प्रदेश मे विकास की बयार बहने लगी , गरीबों को सस्ते में अनाज उपलब्ध हो गया । राजनांदगांव से चुनाव लड रहे हैं ।
 रमन सिंह भी हार सकते हैं - रमन राज पहले 5 सालों तक तो ठीक ठाक रहा लेकिन इसके बाद राज्य के बुरे हाल होने शुरू गए । भाजपा के कार्यकर्ताओं को नजरअंदाज किया गया , उन्हे कमाई के लिये कोई अतिरिक्त साधन नही जुटाने दिये गए जबकि पार्टी पद मे बने लोगों ने अपनी संपत्तियां कई गुना बढा लिये । ऊर्झा मंत्री  होते हुए इन्होने छत्तीसगढ विद्युत राज्य मण्डल का विभाजन करके जो कंपनी बनाए वह घाटे मे चलने लगी क्योंकि सरकारी कर्मचारियों से किये जा सकने वाले कामों को निजी ठेकेदार के आदमी करने लगे । हर ठेके मे घोटाले की खबरें बाहर आने लगी, सस्तें मे अनाज मिलने से मजदूरों का अभाव पैदा हो गया  जिससे हर वर्ग दुःखी हो गया है । ये सब तो ठीक था किंतु जिस तरह से गरीब आदिवासीयों को नक्सली बनाने की होड का प्रचलन शुरू हुआ वह रमन सरकार को ले डूबा । आज हर आदिवासी जो जंगल को अपना समझता है डर रहा है कि कहीं उसे नक्सली ना बना दिया जाए । रमन सिंह की विधानसभा सीट से कांग्रेस उम्मीदवार के रूप मे अलका मुदलियार खडी हैं जिनके पति उदय मुदलियार को दरभा काण्ड मे नक्सलियों ने मार दिया था । अलका मुदलियार के साथ महिलाओं की सहानुभूति लहर खडी है , राजनांदगांव का व्यापारी वर्ग राजनांदगांव के फोर लेन ब्रिज के अब तक अधुरे निर्माण से खासा नाराज है क्योंकि उसकी वजह से उन्हे पिछले 4 सालों से धूल और अव्यवस्थित ट्रैफिक का सामना करना पड रहा है । रही सही कसर अटल बिहारी बाजपेई जी भतीजी करूणा शुक्ला ने वहां पहुंच कर पूरी कर दीं और महिलाओं तथा ब्राह्मण वोटों पर अच्छा खासा प्रभाव डालते हुए अलका मुदलियार का पक्ष मजबूत कर दीं है ............  आगे की बात 8 के बाद ।

                                छत्तीसगढ मे कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने जिस तरह से योजनाबद्ध होकर काम किए है वह सराहनीय है ।  जनता के बीच मे नरेन्द्र मोदी को भाजपा का प्रधानमंत्री का चेहरा साबित करके विधानसभा चुनाव मे उन्होने परिवर्तन की अहम् भूमिका निभा दिये । लेकिन एक व्यक्ति ऐसा है जिसने सत्ता परिवर्तन के लिए साम- दाम- दण्ड- भेद का एकदम सही और सटिक इस्तेमाल करके अभी से बाजी अपने हाथों मे  रख लिये हैं ...वह हैं कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ......
                                   अजीत जोगी की एक जबरदस्त पकड ये है कि इनके समर्थक हर दलों मे बराबर भागीदारी बनाए हुए हैं । इनकी क्षमता इतनी जबरदस्त है कि यदि भाजपा को 46 सीटें अब मिलती हैं और कांग्रेस को 41 तो भी अजीत जोगी कांग्रेस की सरकार बना सकते हैं । यदि हम अंदरूनी सूत्रों की मानें तो भाजपा के 5 विधायक वो जीतरहे हैं जिन्हे अजीत जोगी का संरक्षण प्राप्त है यानि की सरकार बनने या बिगडने का समीकरण वो 5 विधायकों से भी संभव हो सकता है । इस विषय मे सोचने पर राजनितिक पंडित दल बदल कानून का हवाला देने लगेंगे लेकिन उन्हे समझाने के लिए इतना ही काफी है कि कानून के  जानकार उसकी कमियों को जानते हैं और उसे अमल मे लाते । दे दिया हूँ ..और दे दिया ..... कानूनी परिभाषा बदल जाती है ।