Monday, February 28, 2011

ये है मुसलमान

 इस चेहरे को देख कर आप क्या महसूस कर रहे हैं ... क्या आप बता सकते हैं इसका धर्म क्या हो सकता है.... नही... मैं बताता हूँ ये कौन है । ये है एक आम हिंदुस्तानी जिसे केवल अपने परिवार की रोजी रोटी की चिंता लगी रहती है । यदि शहर में हडताल हो जाये तो इसका परिवार भूखा सोता है, यदि दंगे फसाद हो जाएं तो सबसे पहले यही मरता है और अगर सरकार इसके नाम पर कुछ पैसे देती भी है तो वह सिस्टम के भ्रष्ट हाथों में चला जाता है । ये है नौशाद ।



                        यदि इसके चेहरे को देखें तो आप इसके धर्म से इसे नही पहचान पाएंगे, इसे ही क्या आप किसी भी भारतीय को नही पहचान सकते कि आपके बाजू में बैठा सभ्रांत युवक मुस्लिम हो सकता है । हमारे देश के मुसलमान कोई दुसरे देशों से नही आए हैं वे इसी देश की धरा से जुडे हुए हैं उसी तरह से जैसे देश के सारे क्रिश्चियन हमारे ही भाई बंधु थे जिन्हे इसाई मिशनरीयों नें लालच देकर, इलाज करके और शिक्षा देने के बहाने अपने धर्म से जोड लिये ।
                                                           हमारे देश की मजबूती के लिये अपने उन सारे भाइयों को एक मंच पर लाने की आवश्यकता है जो उलजलूल धर्म या संप्रदाय के चंगुल में फंसते जा रहे हैं या फिर तथाकथित धर्म गुरूओं के शोषण का शिकार बनते जा रहे हैं ।
                               भारत में मुस्लिम धर्म को लाने वाले तो मुगल थे लेकिन अप्रत्याशित तरीके से उनके फैलाव को हिंदु पंडितों ने ही बढावा दिया था । मैं स्वयं कान्यकुब्ज ब्राह्मण हूँ लेकिन आज जब भी अपने आसपास के मुस्लिम भाइयों से मिलता हूँ तो बिल्कुल नही लगता कि मैं किसी दुसरे देशवासी से बात कर रहा हूँ । जिस तरह से ऊपर नौशाद की तस्वीर देखकर आप नही बता सकते उसी तरह यकिन रखें कि कोई दुसरा भी चेहरा देखकर हिंदु मुस्लिम का अंतर नही बता सकता । अब हमें बजाये ये सोचने के कि हिंदु राष्ट्र बनाया जाये हमें ये सोचना होगा कि एक ऐसा समाज बनाया जाये जहां हर संप्रदाय केवल मानव हित की सोचे और केवल एक ईश्वर की अराधना करे । आज कई गुरूओं ने अपने अपने आश्रम बना लिये हैं जिनमे एक ईश्वर की बातें बताई जाती है लेकिन घुमा फिरा कर वे भी गीता पर आ जाते हैं यानि उनका ज्ञान कहीं ना कहीं से रटा हुआ होता है । अधिकांश धर्म गुरू हास्यापद तरीके से पति पत्नि को दीक्षा देकर भाई बहन बना देते हैं यानि संबंधों की ऐसी की तैसी करने और सामाजिक गठबंधन को तोडने वालों की कोई बात नही करना चाहता  उन्हे तो लगता है कि मात्र शारीरिक संबंधो से दूरी करवाने से ईश्वर तक पहुंचा जा सकता है । ऐसे तथाकथित धर्म गुरूओं नें ही हमारे सनातन धर्म का सत्यानाश करने में अहम भूमिका निभाये हैं यदि किसी मुस्लिम ने हिंदु को छू भी दिया तो वह हिंदु भी मुसलमान माना जाता था जिसे उस समय के हिसाब से धार्मिक रिवाज बना दिया गया (दलितों का उदाहरण अब भी हमारे सामने है)  ऐसा होने का दुष्परिणाम ये हुआ कि हमारे ही कई पूर्वज और उनके रिश्तेदार आज मुस्लिम समाज में प्रतिष्ठित हो चुके हैं । 
                           ( इस लेख के कई भाग परम पूज्य गुरूदेव स्वामी श्री कृष्णायन जी महाराज के द्वारा उपदेशित हैं )                   
                                                                        

Sunday, February 27, 2011

हमारी मजबूरी, मजबूर प्रधानमंत्री

सोनिया मैडम की मेहरबानी है इस देश पर जो उन्होने मनमोहन सिंह  को इतिहास का सबसे मजबूत प्रधानमंत्री बताते हुए  देश का नेतृत्व दीं,  लेकिन जब लगातार  संप्रंग सरकार के भ्रष्टाचार की परतें खुलने लगीं तो वही मजबूत मनमोहन मनमोहिनी मुस्कान के साथ अपने को मजबूर प्रधानमंत्री बताने लगे । काला धन को स्वदेश लाने की बातें जब भाजपा नें कही थी तो यही मनमोहन थे जिन्होने कहा था कि यूपीए सरकार के आने पर काला धन स्वदेश लाया जाएगा उस समय भाजपा ने अपने प्रधानमंत्री पद के रूप में लालकृष्ण आडवाणी को अपना उम्मीदवार बनाकर भारी भूल कर दी थी वह अपने को लौह पुरूष कहलवाते समय कांधार कांड भूल गये इसके अलावा अयोध्या केस को बंद करने का दोषी भी उन्हे ही जनता नें माना था इसलिये भाजपा की हार हुई । अगर कहा जाये कि विकास पर धर्ण हावी था तो गलत नही होगा क्योंकि भारतीय जनता पैसों में धोखा सहन कर लेती है मगर आस्था से खिलवाड नही होने देती ।
                                                              अभी तक जो भी भ्रष्टाचार के मामले सामने आए हैं वे तो प्याज का केवल सतही परत है, जब उन छिलकों को उतारा जाएगा तो लगातार हर परत के नीचे एक भ्रष्टाचारी कांड खुलता जाएगा । हमारे देश का ये दुर्भाग्य है कि हम सदा से दुसरों के रहमोकरम पर जीना पसंद करते आए हैं फिर चाहे वे मुगल हों या अंग्रेज हम अपनी गुलामी मानसिकता से नही उबर पा रहे हैं । सोनिया को हम भारतीय कहते हैं मगर भूल जाते हैं कि यदि हमारे परिवार की कोई लडकी दुसरे समाज या जाति में शादी कर लेती है तो उससे हम सारे संबंध तोड लेते हैं मगर सोनिया के साथ ऐसा नही कर पा रहे हैं । हमारे देश के भ्रष्टाचारीयों नें सोनिया को अपनी माँ बना रखा है और उसके आँचल की ओट में देश का पैसा खा रहे हैं । सोनिया मन ही मन उन्हे धन्यवाद देती होंगी कि भले ही तुम लोग जितना चाहे उतना खा लो मगर पावर मेरे हाथों में रहने दो ताकि मैं तुम्हे बचा सकूं और  महारानी  बनी रहूं । 
                                                             बाबा रामदेव चाहे जिस स्वार्थ में हो लेकिन ये तो मानना पडेगा कि उन्होने खुल कर राजनीती में कदम रखने का एलान कर दिये हैं । उनके इस कदम के पीछे आरएसएस का अप्रत्यक्ष समर्थन से इंकार नही किया जा सकता जिसका एक सिद्धांत जैसे को तैसा मिले का भी है । यह भी तय है कि यदि रामदेव बाबा के दल को सत्ता मिली तो गांधी परिवार सबसे पहले फरार हो जाएगा क्यों ...................................... ये आप सोचें ............. और ये भी सोचें कि यदि ऐसा हुआ तो क्या हम उन पर आपराधिक मामले लागू कर पाएंगे (क्योंकि इटली का संविधान अपने देश में जन्मे हर बच्चे को और हर नागरिक को आजीवन नागरिकता देता है ताकि कभी किसी दुसरे देश में उस पर आपराधिक मामला बनने पर वह अपने देश इटली में पनाह पा सके   अब या तो मजबूर प्रधानमंत्री को झेलो या फिर मजबूती से उसको उखाड फेंको और ये ध्यान रखो कि इस समय सारे विश्व में सत्ता परिवर्तन जनता कर रही है , सेना नही ।                                                    

Sunday, February 20, 2011

हम हैं सूरदास .....




सूरदास ... महान कृष्ण भक्त औऱ अकबर के प्रमुख दरबारी .. वे अंधे या नही इसमें कई विषमतायें हैं लेकिन मैं उस तरफ हूँ जो उन्हे आँखो वाला अँधा कहते हों । जी हां मेरे विचर में सूरदास कृष्णमोह में ऐशे बंधे हुये थे कि उन्हे हर जगह कृष्ण ही कृष्ण दिखलाई पडते थे इसलिये उन्होने जमाने के हिसाब से स्वयं को अँधा माना और जब जमाने ने देखा कि उन्हे तो कृष्ण के सिवाय कुछ दिखलाई नही पड रहा है तो उसने भी उन्हे अँधा कहा ।



धन्य है सूरदास जिन्होने अँधत्व की एक नई परिभाषा बताये कि किस तरह आँखो के होते हुये भी अँधा बना जा सकता है । अरे हां .. याद आया अभी कुछ दिन पहले किसी अखबार में पढा कि गांव की युवती को नंगा करके सारे गाँव में घुमाया गया था और 5 लोगों नें उसका सामूहिक बलात्कार किये थे उस गाँव का नाम तो याद नही आ रहा है वरना आप लोगों को बताता कि चलिये देखिये वहाँ आज भी कई सूरदासी लोग रह रहे हैं । फर्क केवल इतना है कि सूरदास केवल कृष्ण के रूप में खोए रहते थे और ये सूरदास गोपियों में खोए रहते हैं .... र्निवस्त्र ।



अरेरेरेरेरे माफी चाहूंगा भाई अच्छे खासे धर्मचर्चा का मैने बलात्कार कर दिया ........ मुझे क्षमा करें हे देश के सूरदासी बंधुओं आपकी भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिये.... लेकिन क्या करूं मेरी भावना भी वैसी ही हो गई है जैसी देश की होती जा रही है, मैं अपने चरित्र को बचाने का प्रयास करता हूँ तो सामने दुसरी भावना आ जाती है । चलिये पुनः क्षमा याचना के साथ आगे बढते हैं .. सूरदास को कितना पारिश्रमिक अकबर देते होंगे ये तो नही पता लेकिन अच्छा देते होंगे तभी तो सूरदास को अपनी रचना बनाने में कोई परेशानी नही आती थी वरना आजकल के तो कई सूरदास रचना के साथ बैठकर, लेटकर ही अपनी रचना पूरी कर रहे हैं और उन्हे उनका मेहनताना भी रचना ही दे देती है ..... लेकिन बात वहीं अटक जाती है ,,...,, भावना पर आकर ... अब आपकी भावना को मैं अपनी समझने की भूल तो कदापि नही कर सकता भले ही आपकी भावना मुझ पर आकर्षित हो रही हो ... इसलिये हमने उसे नये जमाने में लिव ...सिव जैसा कुछ नाम दे रखा है ।



अरे भाई अब मेरी भावना को आप गलत ना समझें वह मनमोहन की मोहिनी की तरह एकदम पाक साफ है यानि की नजर तो गंदी है मगर नियत साफ है । अब बात चली बलात्कार की तो याद आया कि एक देश का बलात्कार हो गया जिसका हुआ उसके बच्चों नें बलात्कारीयों के पिता पर उंगली उठाई और आरोप लगाये तो बच्चों के पिता नें सफाई के साथ कहा कि घर संभालने के लिये कई बातों को अनदेखा करना पडता है मेरे बच्चे तो अच्छे थे लेकिन तुम्हारी माँ को इतना सजधज कर जाते देख उनकी नियत बदल गई और जेवर उतारते उतारते जो हुआ उसे तुम लोग नाहक बलात्कार कह कर बलात्कार का नाम बदनाम कर रहे हो । तुम्हारे देश की लाज दुबारा ना लुटे इसलिये एक डायन को भेजा हुआ हूँ जो तुम्हारे देश की आबरू लुटे बगैर केवल घर बार बिकवा देगी और तुम्हारी बलात्कार की कहानी सूरदासी खबरों में दब जाएगी ।

Tuesday, February 15, 2011

भ्रष्टाचार क्यों और कैसे

बोफोर्स घोटाला- 64 करोड़ रुपए

यूरिया घोटाला- 133 करोड़ रुपए

चारा घोटाला- 950 करोड़ रुपए

शेयर बाजार घोटाला- 4000 करोड़ रुपए

सत्यम घोटाला- 7000 करोड़ रुपए

स्टैंप पेपर घोटाला- 43 हजार करोड़ रुपए

कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाला- 70 हजार करोड़ रुपए

2जी स्पेक्ट्रम घोटाला- 1 लाख 67 लाख करोड़ रुपए

अनाज घोटाला- 2 लाख करोड़ रुपए
ये है हमारे देश की वो हकिकत जो ये हकिकत बयां करती है कि अभी हम आगे नही बढ सकेंगे । हमारे देश में बढते भ्रष्टाचार के लिये कोई एक व्यक्ति दोषी नही है बल्कि इनकी जडों में जाते ही हमें नेता और अधिकारी ही नजर आते हैं । यदि किसी नेता का कोई सगा संबंधी या दोस्त भ्रष्टाचार में लिप्त पाया जाता है (जैसा कि सोनिया- क्वात्रोची) तो कार्यवाही केवल उस पर कंद्रित हो जाती है और यही है हमारे देश में बढ रहे भ्रष्टाचार की नींव ।
सोच कर देखें कि यदि क्वात्रोची को गिरफ्तार ना होने की दशा में सोनिया की गिरफ्तारी की जाती तो क्या होता ?
। ....। इसका जवाब कोई नही देगा क्योंकि उस समय देश के सारे नेता अपनी अपनी चढ्डी उतरने से बचाने के लिये एक साथ मंच पर खडे हो जाते । अब हमें ये सोचना है कि जब हमारे देश के विधान बनाने वाले ही करप्ट हैं तो देश को हम कैसे बचाएंगे । मैं कोई अर्थशास्त्री नही हूँ लेकिन इतना जरूर बता सकता हूँ कि यदि कानून बनाने वाले और उस कानून का पालन करने वाले अलग अलग हों तभी कोई प्रभावशाली कार्यवाही हो सकती है जबकि अभी होता ये है कि कानून बनाने वाली संसद से लेकर उसका पालन करने वाली संस्था तक सब कुछ नेताओं के द्वारा संभव होता है । नेता  न्यायपालिका को अपने प्रभाव में लेने का भी कुत्सिक षणयंत्र रच रहे हैं ताकि वह भी उनके हाथों में आ जाये और देश को इत्मिनान से खोखला किया जा सके ।
                                                  मैं व्यंग्य की भाषा में बहुत कुछ कह सकता था लेकिन लगा कि जब पूरे देश को शेष  विश्व हास्यापद नजरों से देख रहा है तो साफ साफ कहना ही ज्यादा बेहतर समझकर सीधे सीधे लिख रहा हूँ । सच तो ये है बढते भ्रष्टाचार के साथ साथ देश की  जेब ढिली हो रही है, जो पैसा देश का है उसे तो नेता अधिकारी मजे से खा रहे हैं और देश को विदेश के कर्ज से चला रहे हैं

Saturday, February 12, 2011

हम क्यों ना मनायें वेलेंटाइन डे

हा हा  हा ... ह हहा ... देखे क्या बढिया सीन है । चलो पहले बात करते हैं बांये की ..... ये हैं सेंट वेलेंटाइन जो अपनी प्यार की सेंट हमारी धरती पर धीमे धीमे छोड रहे हैं ... जबरदस्ती ही सही लेकिन इनकी तकनीक कारगर हुई है और अब   सारे देश की युवा लडकियां राखी को छोड राखी सावंत को पछाडने पर तुल गई हैं । उन्हे अब दांये में रूचि नही है उन्हे तो अब बांये में ज्यादा दिलचस्पी है । अरे भाई अब गया वो जमाना जब फिल्म अछूत कन्या में अशोक कुमार  देविका रानी  से चार हाथ दूर होकर गाना गाते थे अब तो फूल फास्ट का जमाना है फिल्म शुरू होते ही हिरोइन के आने की खबर उसकी हिलती छातीयां दिखा कर दी जाती है । .......
 अब बांये में हैं  सन् 1936 की फिल्म और दांये में है 2003 की बूम , और अब तो माशाअल्लाह 2011 चालू है देखें पिछले साल के हिस्स के बाद और कौन सी चीजें अपने नौजवानों के हिस्से में आती है .। 
                    भाई लोगों ऐसा है कि अपन तो एक बात जानते हैं कि जो काम अपने को नही आता लेकिन उसको दुसरे करते हैं तो अपन को चिढना जरूरी है । तो चलिये फिर .... देर किस बात की है भाई जाहिर सी बात है कि अब तो अपन प्रेमी रोमांस की उम्र से आगे बढ कर खरीदी प्रेम की उम्र में आ गये हैं लिहाजा चलो  भारतीय संस्कृति को याद करते हुये लाठीयां तैय्यार करो और निकल चलो मेरे साथ उस मुहिम में कि जो काम हम नही कर सकते वो हमारे सामने आज के नौजवान कैसे कर सकते हैं । ...... ।।




इन बेशर्मो को अब हम नही हमारी लाठीयां सबक सिखाइंगी । ............
..... ................अरे भाई वो बापू वाली तस्वीर गलती से लग है दरअसल में मैं ये वाली लाठी की बात कर रहा था । आशा है कि मेरे लिखे लेख को अच्छा ही कहेंगे .......

हिंदुस्तान नपुंसक है ।


सोचो ... सोचो... और सोचो कि भला मैने ये तस्वीर क्यों लगाई या ऐसी  हेडलाइन्स क्यों बनाई । आप चाहे जो सोचें... भाई हमने तो सोचा कि जब यासिन जैसा देशद्रोही खुलेआम हमारे देश में हमारी ही ऐसी की तैसी कर रहा है और भाजपा के फेंकें जूते उस तक नही पहुंच पा रहे हैं तो हम तो नपुंसक ही हुए ना और जब हम ही नपुंसक है तो सारा देश नपुंसक नही हुआ क्या ( क्यों .. पाकिस्तान को आतंकीयों का देश कहते हैं कि नही)  । अब जरा कुछ बातें करें अपने देश की एक प्रजाती की जिसे हम हिजडा या किन्नर कहते हैं । क्यों कहते हैं ये नही सोचते ... बस कहते हैं .... । जब वे हमारी दुकानों पर या मकानों में या फिर ट्रेनों पर वसूली अभियान करते हैं तो हम क्या करते हैं .... खुदको उन हिजडों के आतंक से बचाने के लिये 10-20 रूपये दे देते हैं । बस.... कुछ वैसा ही तो हम काश्मीर के लिये कर रहे हैं । वो हिजडे हम पर, हमारे देश पर आँखे गडाते जा रहे हैं, हिंदुओं को निर्ममता से मार रहे हैं, तिरंगे को अपना मानने से इंकार कर रहे हैं और हम उन हिजडों को बजाय ये कहने के की मर्द हो तो सामने आकर लडो.... चुपचाप नपुंसकों की तरह  बैठ गये हैं । 
                                              हे मेरे प्यारे नपुंसक साथियों आओ अपने देश की खातिर अपने अंदर कुछ जोश उत्पन्न करने वाली दवाइयों का सेवन कर लें । चलो.. .....  शहिदे आजम भगत सिंह, उधम सिंह या फिर चंद्रशेखर आजाद की भस्म को तलाश करें और उस भस्म में खुदीराम बोस की जवानी को  कारगील के शहीदों के जुनून में मिलाकर पी लें ....... शायद ये दवा हमारे भीतर कुछ मधर्नगी का अहसास पैदा कर सके ।
                                              हाहाहाहाहाहाहाहा .... मैं कोई मजाक नही कर रहा हूँ .. लेकिन सचमुच आज अपने भीतर के मर्द को मरा हुआ पा रहा हूँ क्योंकि मेरे जीवन में मेरी पत्नि और  10 और 8 साल के अपनें  बच्चों की जवाबदारी है और उनका मेरे सिवाय कोई नही है, इस कारण मैं अपने साथ साथ उन सभी देश प्रेमियों के जज्बातों को समझ सकता हूँ जो अकेले परिवार के है और उन हिजडों के खुले आतंक को अपने परिवार की खातिर चुपचाप सह रहे हैं जो देश पर लगातार हमले कर रहे हैं ।
                                         खैर... 2 शब्दों के साथ अपना लेख समाप्त करता हूँ कि - धन्यवाद हमारी 100 करोड की नपुंसक जनता को जो 1000 नेताओं के रहमो करम पर अपना देश बेच चुके हैं । जय हिंद ।।

Wednesday, February 9, 2011

चोरी कैसे बची ?

लो जी मैं फिर से घुमफिर कर आ गया अपने गुरूदेव के पास । लेकिन इस बार मैं नही दुसरा कोई बता रहा है अपनी बात जरा उनकी जुबानी भी तो कुछ सुनें (श्री श्याम बंसल द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर मेरे द्वारा कथानक पेश किया गया है )-

     हरिओम्, मेरा नाम श्याम बंसल है और मैं गुना (मध्यप्रदेश)  की मण्डी (अनाज मण्डी) में अभिलाषा साडी सेंटर के नाम से अपने पिता श्री बाबूलाल बंसल जी का दिया साडीयों का व्यवससाय चलाता हूँ । मेरा व्यवसाय ईश्वर कृपा से अच्छा चल रहा है 3 साल पूर्व मुझे  जब मन की शांति नही मिल रही थी  उस समय  मैं कई आश्रमों से   जुडा था किंतु वहां भी केवल धन ही गया मन की अशांति नही तब मुझे अपने एक रिश्तेदार दिल्ली जाने का मौका मिला और वहां जाकर मैने गुरूदेव कृष्णायन जी महाराज से दीक्षा ग्रहण कर ली  ।  17 जनवरी को मेरी पत्नि ज्योति नें बताईं कि उसकी एक बहन मीरा अग्रवाल जो तिल्दा, छत्तीसगढ में रहती है   वहां से गुरूदेव के आचार्य श्री संतोष शर्मा जी 31 जनवरी को 2 लोगों को गुप्त विज्ञान की कक्षा दोने के लिये गुना आ रहे हैं ।
                                                इसके बाद 31 जनवरी को मुझे सूचना मिली कि गुरूदेव के आचार्य श्री संतोष शर्मा जी गुना पहुंच चुके हैं तो फिर क्या था उनके साथ मिटिंग हुई और फिर मैने अपने परिवार के लोगों के साथ 1 फरवरी को दिव्य गुप्त विज्ञान की शिक्षा ले ली जिसमें मुझे ऊर्जा के सिद्धांत के साथ साथ दिव्यास्त्रों का प्रयोग करने की विधी बताई गई  ।  .... । कहते हैं समय के फेर को कोई नही जानता ठीक ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ ।  मैने 1 फरवरी को कक्षा ली और 4-5 फरवरी की रात को मेरे दुकान पर चोरों का धावा पड गया ।
                                                 चोरों ने दुकान का लॉकर तोडकर उसमें रखे 100-100 ग्राम चांदी के 2 सिक्के और ढाई हजार रूपये नगदी को अपनी जेब में रख लिये और 3 लाख के एन.एस.सी. सर्टिफिकेट को निकाल लिये । इसके बाद दुकान में रखी केवल किमती वैवाहिक साडियों को उन्होने एक साथ गत्ते के बडे बाक्स  में रख लिये (जिनका मूल्य तकरीबन ढाई लाख के  आसपास का बनता है) उसी बाक्स में उन्होने एन.एस.सी. के पेपर भी रख दिये और बाहर निकल गये ।
                                            चूंकि मेरी दुकान मण्डी में है इसलिये दिनभर तो चहल पहल रहती है लेकिन रात होते ही पूरी मण्डी में सन्नाटा पसर जाता है । चोरों नें ताला तोडा और सारा माल समेट कर जब बाहर की ओर भागने लगे तभी मेरी दुकान से कुछ दुरी पर रहने वाले सरदार जी की नजर मेरी दुकान के खुले शटर पर पडी तो वे मेरी दुकान की ओर बढने लगे इतने में उनकी नजर चोरों पर पडी तो वे चोर चोर का हल्ला करने लगे जिस पर चोरों नें बक्सा को वहीं छोडकर भाग निकले । इसके बाद सरदार जी नें फोन पर मुझे सूचित कर घटना की जानकारी दीये तो मैं औऱ मेरे सभी भाई दुकान पर पहुंचने लगे  । दुकान की हालत देखते ही मैं सन्नाटे में आ गया क्योंकि सारा किमती माल दुकान से गायब था और लाकर टुटा हुआ था इतनें में मेरे एक भाई की नजर सडक के किनारे पडे बाक्स पर गई तो हम लोगों नें बक्सा खोलकर देखा तो हैरान रह गये दुकान का सारा माल मुझे मिल गया था (2 सिक्के और नगद को छोडकर) ।
                                           सामान मिलने के बाद अचानक मुझे गुरूदेव का ध्यान आय़ा तो ऐसा लगने लगा मानो सारी घटना मेरे सामने ही हुई है और चोरी की  आधी रात को अचानक सरदार जी का बाहर निकलना और चोरों के द्वारा चोरी करने के बाद भी माल का ना ले जाया पाना केवल गुरूदेव के उन दिव्यात्रों से ही संभव हो सका था जिनके द्वारा मैने अपनी दुकान को सील किया हुआ था । ..................  सचमुच ... कोई इस घटना को  किसी भी नाम से संबोधित करे .... मेरे लिये तो यह केवल गुरूकृपा से ही संभव लग रहा है ।

                श्याम बंसल
                अभिलाषा साडी सेंटर
                अनाज मण्डी, गुना (मध्यप्रदेश)
                 मोबा.- 09425797374
                 

Monday, February 7, 2011

मेरी दुर्दशा के लिये आप दोषी हैं ।

अरे भाई डरो मत ... मैं तुमसे युद्ध लडने या भ्रष्टाचार से निपटने की बात नही कहने वाला ... ये काम अब दुसरों को करने दो । अपने देश के लोग महान हैं ... या शायद महानता की पराकाष्ठा रखने वाले सद्पुरूषों का देश कहा जाये तो अतिश्योक्ति नही होगी । कैसे ....
जरा देखें कि हम कहां है और क्या कर रहे हैं . ..... .
देश में बढते अपराधों को आंकने के लिये बजाय किसी कार्यालय या पुलिस स्टेशन में जाने के छोटी सी विधि बता रहा हूँ जिससे आप सारे देश में हो रहे क्रियाकलापों से तत्काल अवगत हो जायेंगे .........
कैसे ..,,,,,,..... आज आपने  कितने लोगों की मदद किये, कितने पैसों की रिश्वत दिये, कितना समय धर्म को दिये, कितनी बार लोगों पर वासनाभूत नजर किये, कितनी चोरी किये, कितनी दफा गाली गलौच किये और अपने हर सदकर्ण औऱ बुरे कर्मों का लेखाजोखा तैय्यार करके 100 करोड से गुणा कर दो ...... अब             आपको     लगेगा कि मैं बौरा गया हूँ ... क्या किसी एक के गलत होने से पूरा देश सही या गलत हो सकता है ?
                                                               जी हाँ जनाब मैं बिल्कुल सही हूँ केवल एक आपके गलत होने के कारण मेरी ये दुर्दशा हो रही है कि लगातार बढती महंगाई और भ्रष्टाचार के गर्त में भी मैं अपने को डुबने से बचाये रखने का भरसक प्रयास कर रहा हूँ । यदि आप सही होते तो आप में ये लेख पढने का समय ही बचता क्योंकि तब आप किसी दुसरे के भले के लिये सोचते रहते । मैं अपने और इस देश की सारी बरबादी के लिये किसी नेता को दोष नही दूंगा क्योंकि उसे लाने वाले भी आप हैं । आपने ही अपनी गलत बातों को सही करने के लिये इस नेता को चुना था ताकि आप उससे अपने मनमुताबिक काम करवा सकें । जब सारी गलती आपकी है तो भला मैं क्यों अपने को जवाबदार समझूं  इसलिये मैं अपने सारे दोषों को परे रखते हुये इस पूरे  सिस्टम को खराब करने के लिये आपको जवाबदेह मानते हुये देश की सारी बुराइयां आप पर मडता हूँ ।

Friday, February 4, 2011

कालों का राज है भाई

अरेरेरेररेरेरेरेरेरेरे ... रूको भाई मैं कोई रंगभेदी नही हूँ .. केवल पत्रकार भी नही हूँ ... मैं तो एक अमीर देश की गरीब जनता के बीच का आदमी हूँ जो काले गोरे आदमीयों तक का भेद तो समझ नही सका है फिर भला काले सफेद धन के बारे में क्या समझता । लेकिन अब समझना चाहता हूँ क्योंकि मुझे अब बच्चों के स्कूल फिस पटाने में समस्या आने लगी है, सब्जी खरीदने की जगह केवल चाँवल पकाकर उसे नमक अचार डाल कर खा रहा हूँ, पेट्रोल ना भर पाने के कारण अब साइकिलिंग कर रहा हूँ , बिजली बिल ना पटा पाने के कारण अवैध रूप से बिजली खींच कर घर को रोशन कर रहा हूँ, .... मैं एक गोरा आदमी हूँ और बडी मुश्किल से अपना जीवन गुजार रहा हूँ ....
         लेकिन गुस्से से मेरा मन भर जाता है
                                           जब उस काले को देखता हूँ जिसके कुत्ते
डॉग ट्रेनर के घर कार से जाकर ट्रेंड हो रहे हैं, जिसका रसोइया कार में बैठ कर बाजार जाता है और गाडी भर कर सब्जी लाता है, उसके घर पर रोज दावतें हो रही है और मैं रात भर डीजे की आवाज सुन कुढता रहता हूँ , लेकिन मैं इसमें उस काले को दोषी नही मानता ............. मैं उसे दोषी मानता हूँ जिसे विदेश में काला कहकर रात के समय ट्रेन से उतार दिया जाता है और वह अपने पर हुए अपमान से कुढकर सारे हिंदुस्तान को चलती ट्रेन से उतार रहा है । अब वह सफेद और काले में भेद भाव कर रहा है और मुझ गोरे को छोड उस काले के साथ सफर कर रहा है ... जिसके घर पर बिना अनुमती घुसने पर गोली मारने का आदेश है और वह काला सा बदसूरत आदमी अपने कुछ हजार साथियों के साथ मुझ जैसे करोडों गोरों पर  राज कर रहा है ।
....
                                        हे मेरे गोरे भाइयों मेरी सहायता करो ... थोडी सी कालिख मेरे लिये भेज दो ताकि मैं भी काला बन जाऊँ ।

ध्यान कैसे लगायें

ध्यानमुद्रा में बैठे इन सज्जन से छत्तीसगढ की पत्रकारिता जगत के साथ साथ लगभग हर बडा अधिकारी परिचित है । ये कोई तमाशा नही कर रहे है बल्कि ध्यानमुद्रा का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं । जिस समय कमल शर्माजी  (दुरदर्शन आँखो देखी ) ध्यानस्थ थे मैने बिना उन्हे बताये ये तस्वीर ले ली थी और सोचा था कि बाद में कोई खबर बनाऊंगा सो वह खबर अभी बन रही है ।
                                                           आज की हमारी भागमभाग वाली लाइफस्टाइल में पुज्य गुरूदेव स्वामी कृष्णायन जी महाराज का सहज योग सिद्धांत बेहद कारगर साबित हो रहा है । इसमें किसी दुसरे से कुछ भी पुछने की जरूरत नही रह जाती है कि मुझे क्या करना है और क्या नही करना है अप्रत्याशित रूप से सब कुछ अपने आप होते जाता है । पहले मैं चुपचाप बैठ जाने को ध्यान लगाना समझता था किंतु असल ध्यान लगाना मुझे तिल्दा निवासी आचार्य़ मनीष जी नें बताये । बताये क्या इतनी सरलता से समझाये कि 2 मिनट में 2 घंटे का ध्यान लगने लगा । 
                                      यदि आप भी ध्यान लगाना चाहते हैं तो विधि को अपना कर देख लें - जैसे ही आपको लगे कि आप कुछ समय के लिये अकेले हैं या खाली हैं तो तुरंत अपनी दोनो आँखों को बंद कर लें औऱ अपनी दोनो आँखों के बीच के स्थान(त्रिकुटी) पर उस ईश्वर  का ध्यान लगायें जिसे आप पूजते हों या फिर केवल उगते सूर्य की तस्वीर को सोचें और फिर लगातार केवल उसे देखते रहें बिना आँखों को खोले ...... फिर देखिये अपने जीवन में होते अप्रत्याशित बदलाव को । (यहां एक बात का उल्लेख करना चाहूंगा कि यदि आपके आसपास कोई सदविप्र समाज का व्यक्ति हो तो उनसे गुरूदेव कृष्णायन जी महाराज की तस्वीर प्राप्त कर लें और उनका ध्यान लगायें , क्योंकि सदगुरू का ध्यान लगाने पर वे अपनी शक्तियां ध्यानस्थ के शरीर में प्रवाहित करते रहते हैं ) 
                                            जरा सोचें- आपकी आत्मा को इस जन्म में मानव शरीर रूपी निवास क्यों मिला है आपको परमात्मा नें किट पतंगा या पेड पौधा अथवा पत्थर बना कर क्यों नही भेजे ?
                                             वैज्ञानिक बातें यहां पर आकर खत्म हो जाती है कि मृत्यु का रहस्य क्या है .... और हम भी उन्ही बातों में उलझते  चले जाते हैं और भूल जाते हैं कि हमारे पास हजारों साल पुराने कई दुर्लभ तंत्र मंत्र हैं जिनकी शक्तियों को हम भूलते जा रहे हैं । आज जब बात होती है राम के चलाने ब्रह्मास्त्र की तो हम तुरंत आंकलन करने लगते हैं कि वह उस युग का कोई परमाणु हथियार होगा लेकिन ये नही सोचते कि राम को उस सुदुर देश में परमाणु हथियार कौन देगा । सद् गुरू कृष्णायन जी महाराज अपनी दिव्य गुप्त विज्ञान की कक्षाओं के माध्यम से आमजन तक सभी दिव्यास्त्र पहुंचा रहे हैं । मैने स्वयं इन विद्याओं को पाया है और इसके प्रयोग फलीभूत भी हो रहे हैं । मैं अपने घर पर बैठे बैठे बिना स्वयं को नुकसान पहुंचाये दुरस्थ स्थानों में बैठे अपने परिचितों का इलाज कर पा रहा हूँ । यदि आपको लगे कि आपकी बीमारी ठिक नही हो रही है तो सदगुरू धाम, नागलोई नई दिल्ली पर संपर्क कर सकते हैं या फिर छत्तीसगढ के किसी भी पत्रकार के द्वारा कमल शर्णाजी अथवा मुझसे संपर्क कर लें । छोटी मोटी बीमारीयों के लिये तो हम लोग ही काफी हैं गुरूदेव के आर्शीवाद से ।

Thursday, February 3, 2011

सफलता के लिये धन नही लगन जरूरी ।

आज के दौर में हर कोई एक बात जरूर कहता है कि पैसों का जुगाड नही है वरना इतनी अच्छी प्लानिंग है कि बस.... पैसे ही पैसे कमाओ .. लेकिन क्या बताऊं केवल 5 लाख रूपयों से मार खा रहा हूँ । शायद आपने ने भी किसी से ये बात कहे होंगे या मन में सोच रखे होंगे । आज मैं आपको ऐसे व्यक्ति की बात बता रहा हूँ जिसनें सिर्फ लगन से सबकुछ हासिल कर लिया है और अब भी कर रहे हैं ।
                                                      छत्तीसगढ की शिक्षाधानी भिलाई नगरी में स्थित इंदु टेक्नीकल इंस्टीट्यूट से पूरा छत्तीसगढ परिचित है लेकिन इस संस्था के संस्थापक श्री एस. एम. उमक के बारे में बहुत कम लोगों को ही जानकारी है कि वे किस तरह का व्यक्तित्व रखते हैं । इंदु टेक्नीकल इंस्टीट्यूट की स्थापना के पहले वे इलेक्ट्रानिक्स सामानों से कुछ ना कुछ प्रयोग करते ही रहते थे लेकिन उनके प्रयोग के दौरान जैसे ही पैसों की समस्या आडे आई उन्होने अपना स्वयं का पूरे प्रदेश (तब मध्यप्रदेश था) में पहला रोजगार की गारंटी देने वाला शुद्ध व्यवसायिक संस्थान खोल दिये नाम रखे इंदु टेक्नीकल इंस्टीट्यूट जिसमें हर युवक को उन्होने स्वयं का रोजगार शुरू करने के लिये प्रोत्साहित करना शुरू किये । मोटर बांइटिंग से लेकर कम्प्यूटर तक बनाने का प्रशिक्षण दिया जाता है ... लेकिन उनके प्रयोगधर्मी स्वभाव नें उनके लिये कुछ और ही मंजिल तय कर ऱकी थी जब एक संस्थान पूर्णतः स्थापित हो गया तो इहोने शिक्षा के क्षेत्र में नया प्रयोग करते हुए इंदु आऊ. टी. स्कूल की स्थापना किये जहां छोटे बच्चों के संपूर्ण विकास के लिये योजना रखी गई ।
                                इस दरम्यान उन्होने साफ्टवेयर पर कार्य़ शुरू किये और अपने स्कूल के बच्चों के लिये नये नये एनिमेटेड साफ्टवेयरों का निर्माण किये जिससे बच्चों का पढाई के प्रति लगाव बढते गया । इंदु आई.टी. स्कूल में हर तरह की सुविधा नाममात्र की फिस पर ली जाती है जिसके कारण पालकों का झुकाव इस स्कूल की ओर बढने लगा । हार्स राइडिंग, स्केटिंग  सहित हर तरह के रूचिकर खेलों को देने के बाद भी श्री उमक नें अपने प्रयोग बंद नही करते हुये अनवरत अपना प्रयोगधर्मी व्यवहार जारी रखे ।
                              यदि आप भिलाई आते हों या फिर आसपास के रहने वाले हों तो एक बार  इंदु आई.टी. स्कूल में जरूर जाकर देखें कि वहां लगे एक सामान को चाहे वह बिछा हुआ कालीन हो या फिर पेड पौधे , पार्किंग हो या झुले केवल एख ही व्यक्ति नें सब कुछ सजाया है और वह भी केवल अपनी परोपकारी लगन के साथ ।
                              इसके बाद जबकि स्कूल में उनका पूरा प्रयास सफल रहा और व ह स्थापित हो गया तो उन्होने अप्रथ्याशित रूप से एक नये प्रयोग की ओर बढते हुये इंदु अप्लायेंस की स्थापना किये जिसके अंर्तगत पूरे मध्यभारत की एकमात्र क्रिकेट बॉलिंग मशीन  का निर्णाण किया जाता है । अब उनका प्रयास इस ओर है कि पूरे विश्व में सबसे कम दरों पर बॉलिंग मशीन उपलब्ध कराई जाये और वे इस प्रयास में भी सफल हो रहे हैं ।
                              अभ तक जो मैने लिखा इससे कई लोगों को गलतफहमी हो गई होगी कि मैं कोई विज्ञापन का काम कर रहा हूँ , यदि आपने ऐसा सोचे तो  आफ अपने आप को धोखा देने वाले व्यक्ति साबित होंगे क्योंकि यहां पर मैने इंदु टेक्निकल इंस्टीट्यूट, इंदु आई.टी.स्कूल या फिर इंदु अप्लायंस के बारे में नही एक व्यक्ति के बारे में बताया हूँ । जिस तरह से आज हम बिल गेट्स, प्रेमजी अजीम  या फिर नारायण मूर्थि के बारे में बातें तो करते हैं लेकिन उनकी मेहनत को अपनाना नही चाहते । आज देश में कितने लोग ऐसे हैं जिन्होने मिट्टी से आसमां तक का कडी मेहनत से सफर तय कर ऊंचाइयां हासिल किये हैं और उन्हे हम जानते हों । यकिनन ...... हम उन्हे जानते हैं ... लेकिन उन सा बनना नही चाहते .... भाई सभी लोग मेहनती हो जाएंगे तो आलस कौन करेगा ।

Wednesday, February 2, 2011

भ्रष्टाचारी हम है ।

किसने कितना पैसा खाया या किसने कितना कमाया उससे देश को क्या मतलब । इसमें देश का अर्थ हम सभी आम  जनता है । हम लोगों को अपनी दाल रोटी कमाने के बाद इतनी फुर्सत नही रहती कि देश के नेता, अधिकारी और अफसरशाही देश का पैसा जो हमारे इलाज में, शिक्षा में और हमारे बच्चों के रोजगार में काम आना चाहिये कैसे अपने बाप का माल समझ कर अपनी जेब में डाले जा रहे हैं । इसमें दोषी कौन है ?  दोषी वो लोग नही हैं जो हमारा पैसा डकारे जा रहे हैं बल्कि हम लोग हैं जो सब कुछ देखने के बाद भी दुसरे की पहल का इंतजार करते रहते हैं । जरा सोच कर देखें कि अगर कोई आपसे कहे कि फलां विभाग का कर्मचारी मुझसे इस काम के लिये दस हजार मांग रहा है तो आपका जवाब क्या होता है ? ........... ?  आपकी पहली प्रतिक्रिया यह होती है कि क्या करोगे भाई बिना लिये दिये कुछ नही होता ।।।।
                             लेकिन अब  आप दुसरा पक्ष देखें मुझसे मेरे मित्र नें कहा कि इस विभाग का अधिकारी मुझसे इस काम का 5000 रूपये मांग रहा है समझ में नही आ रहा मैं क्या करूं ... लेकिन मुझसे कहने के बाद उसे कुछ भी करने की जरूरत नही पडी हम लोगों नें उस अधिकारी की वो गत कर दिये कि उसके दफ्तर की सारी लंबित फाइलें चार दिनों में निपट गईं । क्या हम लोग एक दुसरे से भिन्न हैं ... नही ... हम सब एक जैसे ही हैं ईश्वर नें हम लोगों को जब मानव शरीर में भेजे हैं तो ये हमारा कर्तव्य है कि हम अपने साथ साथ दुसरे की मदद को भी तत्पर रहें । मैं अकेला तब तक था जब तक केवल अपने लिये जी रहा था , लेकिन जैसे ही दुसरों की सहायता के लिये घर से बाहर निकला मेरा दायरा विस्तृत हो गया । आज हम लोग अकेले ना होकर 200 से ज्यादा लोगों के साथ संगठक के रूप में कार्य़ कर रहे हैं । खैर... अब तक चाहे देश जैसा चल रहा हो ये अलग बात है अब हमारा फर्ज है देश के प्रति जवाबदारी दिखाने का वरना तैय्यार रहें अपने बच्चों को रोजगार ना दिला पाने के गम को पाने का ..... जब आपके बुढापे में याद आए कि मैने क्या नही किया तब इस पाठ को याद रखियेगा कि आपने अपना संगठन ना बना पाने के कारण और चलती का नाम गाडी के बहाने जो गल्ती किये उसका खामियाजा बुढापे में भुगत रहें हैं .... जवान बच्चों को बेरोजगार घर में बैठे देखते हुए औऱ अपनी किस्मत को रोते हुए ।