बोफोर्स घोटाला- 64 करोड़ रुपए
यूरिया घोटाला- 133 करोड़ रुपए
चारा घोटाला- 950 करोड़ रुपए
शेयर बाजार घोटाला- 4000 करोड़ रुपए
सत्यम घोटाला- 7000 करोड़ रुपए
स्टैंप पेपर घोटाला- 43 हजार करोड़ रुपए
कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाला- 70 हजार करोड़ रुपए
2जी स्पेक्ट्रम घोटाला- 1 लाख 67 लाख करोड़ रुपए
अनाज घोटाला- 2 लाख करोड़ रुपए
ये है हमारे देश की वो हकिकत जो ये हकिकत बयां करती है कि अभी हम आगे नही बढ सकेंगे । हमारे देश में बढते भ्रष्टाचार के लिये कोई एक व्यक्ति दोषी नही है बल्कि इनकी जडों में जाते ही हमें नेता और अधिकारी ही नजर आते हैं । यदि किसी नेता का कोई सगा संबंधी या दोस्त भ्रष्टाचार में लिप्त पाया जाता है (जैसा कि सोनिया- क्वात्रोची) तो कार्यवाही केवल उस पर कंद्रित हो जाती है और यही है हमारे देश में बढ रहे भ्रष्टाचार की नींव ।
सोच कर देखें कि यदि क्वात्रोची को गिरफ्तार ना होने की दशा में सोनिया की गिरफ्तारी की जाती तो क्या होता ?
। ....। इसका जवाब कोई नही देगा क्योंकि उस समय देश के सारे नेता अपनी अपनी चढ्डी उतरने से बचाने के लिये एक साथ मंच पर खडे हो जाते । अब हमें ये सोचना है कि जब हमारे देश के विधान बनाने वाले ही करप्ट हैं तो देश को हम कैसे बचाएंगे । मैं कोई अर्थशास्त्री नही हूँ लेकिन इतना जरूर बता सकता हूँ कि यदि कानून बनाने वाले और उस कानून का पालन करने वाले अलग अलग हों तभी कोई प्रभावशाली कार्यवाही हो सकती है जबकि अभी होता ये है कि कानून बनाने वाली संसद से लेकर उसका पालन करने वाली संस्था तक सब कुछ नेताओं के द्वारा संभव होता है । नेता न्यायपालिका को अपने प्रभाव में लेने का भी कुत्सिक षणयंत्र रच रहे हैं ताकि वह भी उनके हाथों में आ जाये और देश को इत्मिनान से खोखला किया जा सके ।
मैं व्यंग्य की भाषा में बहुत कुछ कह सकता था लेकिन लगा कि जब पूरे देश को शेष विश्व हास्यापद नजरों से देख रहा है तो साफ साफ कहना ही ज्यादा बेहतर समझकर सीधे सीधे लिख रहा हूँ । सच तो ये है बढते भ्रष्टाचार के साथ साथ देश की जेब ढिली हो रही है, जो पैसा देश का है उसे तो नेता अधिकारी मजे से खा रहे हैं और देश को विदेश के कर्ज से चला रहे हैं ।
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