Sunday, April 29, 2012

रामायण छोड, भागवत क्यों बांचे ।

आज हमारे देश की दयनीय हालत के जवाबदेह सरकार को माना जा रहा है । लोग पानी पी पी के सरकार को कोस रहे हैं लेकिन खुद क्या कर रहे हैं उन्हे स्वयं नही मालूम .. भ्रष्टाचार को कोसने वाले मौका मिलने पर खुद भ्रष्टाचारी बन जाते हैं और दलील बडी प्यारी सी देते हैं ...क्या करें भइय़ा जब सब खा रहे हैं तो हम क्या करें कहां तक बचें..... 
             चलो बात थी भष्टाचार की अब बात करते हैं अपने प्रिय विषय की.... सबसे पहले स्पष्ट कर दूं की इस लेख को वह कदापि ना पढे जिसमें सोचने समझने की क्षमता हो .. यह लेख मैं अपने बगल में श्रीमद् भागवत कथा (प्रथम खण्ड) गीता प्रेस द्वारा मुद्रित को रखा हुआ हूँ और इसे पढने के बाद ही कुछ लिखने जा रहा हूँ । 
               इससे पहले एक कथा जो हमने गत वर्ष बद्रीधाम में अपने सदगुरूदेव श्री कृष्णायनजी महाराज के श्रीमुख से सुने थे वह बता रहा हूँ - 
          एक बार किसी गांव में एक कथावाचक रामायण की कथा सुनाने के लिये पहुंचा । कथा सुनाने के पहले कथावाचक नें श्रीराम चंद्र और हनुमान जी का आवाहन कथा सुनने के लिये तो हनुमान जी जो संयोग से वहा से गुजर रहे थे कथा सनने के लिये रूक गये । कथा वाचक उस दिन हनुमान के लंका प्रवेश की कथा सुना रहा था, उसने कहना शुरू किया और बताने लगा की हनुमान जी जब अशोक के वृक्ष पर बैठे तो सारा वृक्ष सफेद सफेद फुलों से भरा हुआ था ... इस बात पर हनुमान जी नें टोक दिये की हे कथाकार  अशोक के वृक्ष पर सफेद नही लाल फूल थे ..,..,
                                       इतना सुनना था की कथावाचक भडक कर कहने लगा तुम कौन हो जो कथा के बीच में टोका टाकी कर रहे हो .. 
हनुमान जी नें कहे कथावाचक मैं हनुमान हूँ और जब मैं स्वयं अशोक के वृक्ष पर बैठा था तो उसमें लाल फूल लगे हुए थे । अब कथा वाचक अपने तर्क देने लगा जब हनुमान जी अपनी बात पर अडिग रहे तो कथावाचक नें कहा - अच्छा अगर तुम हनुमान हो तो बताओ तुमने वृक्ष पर बैठ कर फूलो के अलावा नीचे क्या देखा । 
हनुमानजी बोले - नीचे सीतामाता राक्षसियो से घिरी हुई थी । 
कथावाचक - सीतामाता को देखकर तुम्हारे मन में क्या हुआ प्रेम आया या क्रोध । 
हनुमान- माता को उस हालत में देखकर मुझे बहुत क्रोध आया । 
कथावाचक - बस हनुमान मैं यही सुनना चाहता था , दरअसल मैं सही हूँ किंतु तुम भी गलत नही हो दरअसल अशोक के वृक्ष पर फूल तो सफेद थे किंतु तुम्हारी आँखे के आगे क्रोध के कारण लालिमा उतर गई थी और तुम्हे सफेद फूल लाल दिखलाई पड रहे थे ।
                                           यह सुनकर हनुमान निरूत्तर हो गये किंतु अपनी बात को मनाने के लिये फिर भी कथा वाचक से तर्क देते रहे अंत में खीज कर कथा वाचक नें कहा की देखो अगर तुम हनुमान हो तो अपना कोई गवाह लेकर आओ जो तुम्हारी बात की सत्यता का प्रमाण दे सके । अब हनुमान जी बोले की ठीक है मैं कल अपने गवाह को लेकर आऊंगा ।
                                               अब हनुमान जी सीधे पहुंचे श्रीराम के पास और कहने लगे की हे प्रभु आप मेरे साथ कल पृथ्वीलोक पर चलियेगा । 
राम बोले क्यों क्या हुआ हनुमान ।
 हनुमानजी - प्रभु एक दुष्ट कथावाचक है जो गलत सलत रामायण लोगों को सुना रहा है । 
श्रीराम -  तुम काहे वहां रूक गये हनुमान वह कथावाचक हैं उनका काम है कथा बांचकर अपना पेट भरना तुम भी फालतुन के काम में लग जाते हो । 
हनुमान - प्रभु उसने मेरा आव्हान किया था रामायण सुनने के लिये इसलिये चला गया ।
 श्रीराम - अरे छोडो भी हनुमान उन्हे अपना काम करने दो तुम भी अपना काम करो हमें भी ध्यान करने दो ।                                                                   किंतु हनुमान इतनी आसानी से कहां पीछा छोडने वाले थे । अंततः दुसरे दिन श्रीराम हनुमान के साथ कथावाचक के सामने पहुंचे ।
हनुमानजी- कथावाचक .. लो मै अपना गवाह ले आया हूँ जो मेरी बात को सत्यता का प्रमाण देंगे ।
कथावाचक - ओह तुम फिर आ गये .. कौन है ये तु्म्हारा गवाह ।
हनुमान- ये हैं प्रभु श्रीराम ।
कथावाचक - अच्छा तो बताओ श्रीरामचंद्रजी आपने अशोक के वृक्ष पर कौन से रंग का फूल देखे थे ।
श्रीरामचंद्र - लाल रंग के .. हां कथावाचक अशोक के वृक्ष पर लाल फूल लदे हुए थे ।
कथावाचक - ओह अच्छा अगर तुम राम तो बताओजब तुम उस वृक्ष के पास पहुंचे तो तुम्हारे मन में क्या भाव थे । तुम अपने भीतर क्या महसूस कर रहे थे ।
श्रीराम - मैं यह सोच रहा था की इस वृक्ष के नीचे सीता नें किस तरह से इतना लंबा समय व्यतीत की होंगी .।
कथावाचक - और उस सोच में तुम्हारे निर्मल मन की करूणा अश्रुरूप में निर्झर बह रही थी ... सही है ना राम ।
श्रीराम - हां कथावाचक यह सही है ।
कथावाचक- सुनो हनुमान तुम्हे अशोक के फूल लाल इसलिये दिखलाई पडे क्योंकी तुम्हारे मन का क्रोध आँको में उतर चुका था और तुम्हारे गवाह श्रीराम के अश्रुपूरित नयन जो रोते रोते लाल हो गये थे इस कारण से उन्हे लाल दिखलाई पडे . . । और सुनो हनुमान अगर तुम दुबारा फिर किसी कथा वाचक से वादविवाद करोगे तो मैं रामायण छोडकर भागवत पढाना शुरू कर दूंगा ।
                               
                                इस कथा के अंत में जो बात उस कथा वाचक नें कही वह बात आज सारे देश में लागू हो गई है । जब तक रामायण पाठ होते थे श्रीराम नाम के जाप से देश में सुक शांति का वास रहता था और आज जब भागवत शुरू हो गई है तो देश का हाल कितना बुरा हो रहा है हम सब देख रहे हैं । दरअसल हम जो भी कथा कहानी सुनते हैं उससे हमारी भावनाएं, हमारा अवचेतन मन आसपास के वातावरम में फैल जाता है और जिस तरह का वातावरण फैलता है देश की मनोस्थिति वैसी ही होती जाती है ।
                               हमारा देश ना केवल राजनितीक बल्कि धार्मिक रूप से भी पतन मार्ग की ओर अघ्रसर है । आप स्वयं जो भागवत पुराण को पढ सकते हैं पडकर देखियेगा की उसमें ऐसी क्या बात है या ऐसी कौन सी सीख हमें मिलती है जिससे हम देश या स्वयं को बदल सकते हैं । देश के सारे कथावाचक अपने को धर्मगुरू समझने लगे हैं और हमारी देश की जनता उन्हे गुरू बना रही है जिनका काम केवल कथापढना है यानि लिखे हुए को पढना है । उनसे ज्ञान नही मिलता बल्की उल्टे हमारा समय और पैसा बर्बाद हो जाता है । ये कथआवाचक अपने शिष्यों की संख्या बढाने में मशगुल रहते हैं .. मेरे इतने शिष्य तो मेरे इतने शिष्य.... लेकिन शिष्यों को क्या सीख दे रहे हैं ये धर्म गुरू । स्वयं भ्रष्ट हैं, लगभग हर भागवत कथावाचकों की दो दो स्त्रीयां है अपने स्वार्थ के आगे देश को छोटा कर देते हैं कभी पुलिस अधिकारी को धमकाते हैं तो कभी पत्रकार को चांटा जड देते हैं । ऐसे कथावाचक जो देश का सम्मान नही कर सकते वे अपने शिष्यों को देश का कौन सा हित सिखला रहे हैं यह उन शिष्यों को भी नही मालूम । 
                                  कई तो ऐसे हैं जो किसी पति पत्नि   को दीक्षा देकर कहते हैं की आज से तुम लोग गुरू भाई बहन हो  अपने सांसारिक मोह का त्याग करो और भाई बहनों की तरह रहो .... धन्य हैं रिश्तों को तार तार करते ये महान धर्मगुरू ।

Thursday, April 19, 2012

मत पूजो भगवान को ।

                                      अखण्ड मंडलाकारम् व्याप्तम् येन चराचरम् ।
                                 तद् पदम दर्शितम् येन , तस्स्स्मै श्री गुरूवे नमः ।।

                                 इसके अर्थ बताने का मेरे पास समय नही है । इसके अर्थ बताने के लिये कई लोग आ जाएंगे लेकिन मैं किसी अर्थ अर्थ में ना पडते हुए केवल यह बताना चाहता हूँ की इसका केवल एक ही अर्थ है - सब कुछ छोड कर केवल गुरू की शरण में आ जाओ । अब यहां मैं स्पष्ट कर दूं की गुरू का अर्थ आसाराम बापू, सुंधांशु महाराज, रामदेव बाबा, निर्मल बाबा  वगैरह वगैरह लोगों से कदापि नही है । दरअसल जिस समय इसकी रचना हुई उस समय किसी को नही पता था की आगे चलकर उनकी पीढी इस कदर गुरूओं का भेद तैय्यार करेगी की माता पिता भी गुरू कहलानें लगेंगे । इसमें मैं यह देखता हूँ की पहले के गुरू का अर्थ आज के उन सदगुरूओं की तरह है जो समाज से हट कर परंपराओं को तोडकर ऐसे  पुरूष बनाते थे जो मानव कल्याण के लिये अपना सारा जीवन आहूत कर देते थे । 

                                    जय श्रीराम.....दशरथ पुत्र राजकुमार राम को श्री राम और फिर मर्यादापुरूषोत्तम राम बनाने के लिये सदगुरू विश्वामित्र नें क्या कुछ नही किये । और विश्वमित्र नें जो कहे उसका निःसंकोच बिना प्रति प्रश्न पुछे श्री राम नें किस तरह से पालन किये होंगे यह समझना दुरूह है । आज जय जय श्रीराम के नारे लगाने वालों में से कितने लोग श्री राम के पद चिन्हों पर चले हैं या चल सकते हैं । राम नें गुरू की आज्ञा के बिना कोई कदम नही उठाये और हर जगह उन्हे बचाने वाले सदगुरू विश्वामित्र ही थे अन्यथा राज भवन से सीधे जंगल में जाना किसी के लिये भी आसान नही था । सीता माता नें अपने पति राम का साथ देकर पत्नि धर्म का वचन निभाए तो राम नें उस की बहुपत्निक रिमत पूजो ती को तोडकर एकल पत्नि प्रथा की शुरूआत किये । लक्ष्मण नें अपने भाई के प्रति समर्पण का भाव रखे और गुरू आज्ञा से आखिरी समय तक अपने भाई का साथ नही छोडे । श्रीराम में  सनातन धर्म का नियम है ।
                                         राधे राधे... वाह इनकी जोडी बिल्कुल राधा कृष्ण की तरह लग रही है .... वगैरह वगैरह कितने ही बार कहा जाता है राधा कृष्ण ... किसी नें यह सोचने की जहमत उठाए की जब कृष्ण की पत्नि रूक्मणी थीं तो ये राधा का चरित्र  कृष्ण के जीवन में कैसे आया दरअसल यह पश्चिमी सभ्यता का हिंदु धर्म में प्रवेश माना जा सकता है  मैं पुछना चाहता हूँ उन महिलाओं से जो राधा कृष्ण को बडे सुंदर ढंग से सजाती हैं तो कभी सोचीं की माता रूक्मणी के मन में क्या बीतती होगी । वह कृष्ण जिन्होनें रूक्मणी का भरे मण्डप में उस समय हरण कर लिये जबकि उनका विवाह शिशुपाल से तय किया जा चुका था और वेदी तैय्यार थी । जब कृष्ण नें रूक्मणी का हरण करके विवाह किये तो आज हम कृष्ण की मूर्ति पूजा करने वाले किस आधार पर एक तथाकथित प्रेमिका के रूप में राधा को पूज रहे हैं यदि उन पूजक महिलाओं को पता चले की उनके पति की एक प्रेमिका है तो वे अपने उस प्यारे प्राणपति के प्राण निकाल लेंगी तो फिर क्यों वे लोग रूक्मणी के स्थान पर राधा को पूज रहे हैं । श्री कृष्ण में सनातन धर्म का कर्म है ।
                                         
                                          बुद्धं शरणम् गच्छामि..... बोलने में कितना अच्छा लगता है धर्मम् शरणम् गच्छामि अहहा सुनकर मानो हममें पूरा धर्म समाहित हो जाता है । आज बुद्ध को मानने वाले दुनिया में सबसे ज्यादा है लेकिन एक बात कोई नही पुछा की बुद्ध .. जो गौतम गोत्र में उत्पन् हुए  और सिद्धार्थ गौतम से बुद्ध बनने में 35 वर्ष का सफर तय किये उन्हे क्या हुआ था जो राजपाट, पत्नि-पुत्र को आधी रात को छोडकर सत्य की तलाश में चले गये... और सत्य भी कैसा .. जिसे ना कोई देखा ना समझा ..बस अनंत सत्य की तलाश में औऱ जब उन्हे वह ज्ञान मिल गया जिससे उन्होने हर सत्य को पहचान लिये तो उन्होने मूर्ति पूजा का विरोध किया जिस पर उन्हे पत्थर तक मारे गये लेकिन उन्होने स्वयं को बुद्ध बना ही लिये । जब बुद्ध नही रहे तो उनके हजारों- लाखों अनुयायी बनते चले गये पूरे विश्व में उस बुद्ध की मूर्तियां करोडों की संख्या में लग गईं जो स्वयं मूर्ति विरोधी थे .. उन्होने केश तक निकाल दिये लेकिन आज बुद्ध को घुंघराले लटों के साथ पूज रहे हैं हम लोग । बुद्ध में सनातन धर्म का सत्य है ।(बुद्ध जो स्वयं राजा थे उन्हे  दलितों   का  भगवान बना दिया गया और इसे सनातन धर्म से अलग करके बौद्ध धर्म बना दिया गया जिसके बाद से सनातन धर्म की वर्ण संरचना टूट गई और सनातन का सत्य अलग हो गया ) 
                                           जियो और जीने दो.... अहिंसा परमोधर्महः का उपदेश जैन समाज का मूल सिध्दांत है औऱ यही एक ऐसा समाज जो आज भी अपने सदगुरूओं की शिक्षा पर अमल कर रहा है किंतु कुछ संशोधन के साथ .. मसलन भारत में इसी समाज से जुडकर कुछ लोगों नें ब्याज का धंधा अपना लिये जो की मूलतः हर समाज में एक बुराई के रूप में देखा जाता है , महानवीर नें अपनें वस्त्रों का त्याग कर दिये किंतु आज सबसे ज्यादा कपडे की दुकान इसी समाज के लोगों द्वारा संचालित है । इस समाज में जारी धर्म हनन लगातार बढते जा रहा है जिससे ना केवल जैन समाज बल्कि हिंदु धर्म की भी क्षति हो रही है । महावीर में सनातन धर्म का ज्ञान और मूल सिद्धांत  है और लुप्त हो चुका तंत्र है। (जैन समाज को आरक्षण की आड में इसे सनातन धर्म से अलग करके जैन धर्म बना दिया गया और किसी जैनी को यह पुछने की नही सुझी की जब हमारे समाज से सनातन धर्म को ज्ञान और अहिंसा मिलती है तो हम इससे अलग कैसे हुए) 
                                            कुछ उद्यम किजे .....कबीर नें अपना पूरा जीवन सूत कातते हुए लोगों को परमात्मा से मिलने की विधी बताए । इसमें सूत कातने का अर्थ यह नही की वे केवल जुलाहे थे दरअसल उन्होने दुनिया को संदेश दिये की मानव योनि में रहते हुए हमें अपने कर्म करना उतना ही आवश्यक है जितना परमात्मा को पाने का प्रयास करना कोई कहते हैं कबीर मुसलमान थे तो कोई उन्हे हिंदु बताने में कोई कसर बाकी नही रखे । मेरे विचार में कबीर सनातन धर्म के ही हैं और जब मुस्लिम शासकों नें इनकी लोकप्रियता देखे तो इन्हे मुसलमान बनाने का भरसक प्रयास किये मुस्लिम तंत्रों का प्रहार किया गया किंतु कबीर अपने गुरू स्वामी रामानंद का नाम लेते हुए हर कठिनाई को पार कर गये । उस दौर में जबकि मुगल जबरदस्ती हिंदुओं का धर्मपरिवर्तन कर रहे थे किसी मुस्लिम का हिंदु बनना वो कैसे बरदाश्त करते इसलिये यह तर्क मुझे नही जमा । कबीर नें लोगों को ज्ञान दिये सिद्धियों के दर्शन करवाए जहां तक हो सका वहां तक जनकल्याण किये किंतु अपनी कुटिया छोडकर कभी बाहर नही निकले वे अनवरत अपने करघे से सूत कात कर अपने परिवार का लालन पालन करते रहे ।  उन्होंने स्वयं ग्रंथ नहीं लिखे, मुँह से भाखे और उनके शिष्यों ने उसे लिख लिया। कबीर समस्त विचारों में रामनाम की महिमा प्रतिध्वनित होती है। वे एक ही ईश्वर को मानते थे और कर्मकाण्ड के घोर विरोधी थे। अवतार, मूर्त्ति, रोज़ा, ईद, मसजिद, मंदिर आदि को वे नहीं मानते थे। जब आप सदगुरू के पास जाते हैं तो सदगुरू आपके भीतर तक झांकते हैं और परखते हैं की यह कहां तक जा सकता है फिर उसे उतना ही देते हैं जितने का वह योग्य होता है । कबीर सनातन धर्म के कर्म प्रधान संस्कृति को लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किये थे किंतु उसे एक अलग कबीर पंथ बनाकर सनातन धर्म से तोड दिया गया । (सनातन धर्म के एक सदगुरू जिनसे कर्म प्रकट हुआ उन्हे ही अलग कर दिये जिससे सनातन धर्म का कर्मवादी सिद्धांत टूट गया )
                                             ईश्वर एक है ...नानक देव को बचपन से ही सारी विद्याएं व सिद्धियां प्राप्त थी वे एक ऐसे सदगुरू हुए जिन्होने लोगों को एक ईश्वरवाद का सही तरीके से जीने का सिद्धांत बतलाए किंतु इन्हे भी अन्य समाज की तरह सही तरह से नही समझा जा सका । इसका नतीजा ये निकला की गुरू नानक नें सिक्ख समाज को जो दस नियम दिये उसे उन्होने दस गुरूओं में विभक्त कर दिये । सिक्ख समाज के द्वारा जो गुरूवाणी मिली वह अद्भूत एवं अलौकिक है । अतिम गुरू गोबिंद सिंह नें खालसा पंथ की स्थापना इसलिये किये ताकी मुगलों को मार कर भगा दिया जाए और हिंदु धर्म की रक्षा हो सके । उन्होनें अहिंसा पथ छोडते हुए खालसाओ को सूवर का मांस खाने को कहा ताकि मुसलमान इनसे दूर रहें और गौमाता की रक्षा की जा सके । गुरू गोविंद सिंह एक ऐसे सदगुरू हुए जिसने केवल  सनातन धर्म की रक्षा के लिये, अपनी भारत भूमि की मर्यादा बचाने के लिये 14 बार युद्ध करके यह संदेश दिये की केवल धर्म को पढने से कुछ नही होगा यदि रक्षा करनी है तो हथियार उठाना होगा । सिक्ख धर्म सनातन धर्म की ऐसी शाखा है जिसमें देशभक्ति, धर्म, कर्म और युद्ध कला सब कुछ समाहित है । लेकिन अफसोस गुरू गोबिंद सिंह नें जिस देश और धर्म की रक्षा के लिये सब कुछ कुर्बान कर दिये वही खालसा अब अपने लिये अलग देश और अलग धर्म मांग रहा है । सिक्ख धर्म नें नानक देव और अपने गुरूओं के एक ईश्वर के सिद्धांत को छोडकर ग्रंथ साहिब को पूजने लगे किंतु उसके नियमों का पालन भूल गये । वे भूल गये उस निराकार एकाकर राम को जिसकी बातें उनके दसों गुरू बतलाते आए थे । ( सिक्ख समाज को आरक्षण औऱ आतंकवाद की आड में इसे सनातन धर्म से अलग करके अलग धर्म बना दिया गया  जिससे सनातन धर्म की रक्षा पंक्ति टूट गई और वह असहाय हो गया )
                                              सबका मालिक एक --- सांई बाबा के दर्शन करने सभी जाते हैं किंतु जब तक वे जीवित रहे उनका विरोध होता रहा । कभी मंदिर तो कभी मस्जिद की आड में । सांई बाबा यदि चमत्कार में नही फंसते तो देश का बहुत कुछ भला हो सकता था किंतु अफसोस उन्हे केवल चमत्कारी पुरूष के रूप में ही पूजा गया उन्हे केवल अफनी मानता पूरी करने का साधन बना दिया गया और इस तरह से एक सदगुरू का करूण अंत हो गया और मानव नें अपनी भौतिक इच्छा के आगे इस संत से कुछ नही मांगा । (अभई तक तो सांई बाबा सबके हैं देखिये किस दिन इन्हे अलग पंथ बनाकर बांटा जाता है ।
                                             सभी जातियां एक हों ...आज मैं जिनकी प्रेरणा से यह सब लिख पा रहा हूँ वह हैं मेरे पिता स्वरूप सदगुरू स्वामी कृष्णायन जी महाराज उन्होने कुछ बातें सूक्ष्म में रहते हुए बताये कुछ पुस्तकों में लिखे और कुछ श्रीमुख से सुना था जिन्हे लिख रहा हूँ । सदगुरूदेव नें वर्तमान में सदविप्र समाज की स्थापना किये हैं जिसमें सभी जातियों के लोग जुडे हुए हैं । उसमें ब्राह्मण हैं,  क्षत्रीय हैं वैश्य हैं और शुद्र भी हैं । कहने का तात्पर्य यह है की एक ऐसा समाज जिसमें सनातन धर्म के मूल सिद्धांतो के साथ जुडना है । सदगुरूदेव की हर बात प्रमाण के साथ है यदि वे कहते हैं की सनातन धर्म में भगवानों से ऊपर परमात्मा हैं तो वह इसे साधनाओं  के जरिये दिखलाते भी हैं । वे हमारे भीतर विराजित देवताओं के दर्शन कराते हैं हमें बताते हैं की सनातन धर्म के मूल उद्येश्यों को जानों । देश की रक्षा करो, देश होगा तभी धर्म बचेगा और बिना धर्म के कैसी जातियां और कहां के पंथ । 
                                               फर्ज किजिये आज किसी परिस्थिति में देश गुलाम हो जाता है तो क्या वह देश या व्यक्ति हम पर राज करेंगे वह हमें हमारे धर्म को मानने देंगे । आज पूरी दुनिया में एक भी   हिंदु राष्ट्र नही बचा है । हमारा भारत देश भी दुसरे धर्मों के बोझ तले दबता जा रहा है । आतंकियों को हम खाना खिला रहे हैं  और अपने साधु संतों और साध्वीयों को कारागार में प्रताडना दे रहे हैं । इन बातों को किसी भी तरह से सनातन धर्म के सम्मान की बात नही कहा जा सकता । यह कहां का न्याय है की जिन आतंकियों को पकडने के लिये हमारे पुलिस और सेना के तमाम जवान शहिद हो जाते हैं उन्हे पाला जाता है और किसी नेता के अपहरण के बदले में ससम्मान छोड भी दिया जाता है । 
                      यदि आप अपने देश को नही बदल सकते तो जय श्री राम , राधे राधे, उद्यम की बातें, ईशअवर एक है का सिद्धांत, अपनी अहिंसा और सत्य की बातें ... सब कुछ पकडे रहो और जिस दिन विदेशी धर्म तुम्हे कुचल दें उसके बाद या तो उनके गुणगान करना या फिर चुपचाप   अपनी औरतों और बच्चीयों को उनके धर्म को बढाने के लिये सौंप देना क्योंकी तुम्हे कोई हक नही है अपना नपुंसक वंश बढाने का  ।    इसलिये हे महान देश के लोगों भगवान को पूजना बंद करो और अपने कर्मो को सुधारो ।

Sunday, April 1, 2012

छत्तीसगढ कांग्रेसः- जोगी नही तो कौन

जबकि छत्तीसगढ राज्य इस समय अपने सबसे बुरे दौर में पहुचने को है औऱ  इस समय नवभारत अखबार में छपे इस ( http://www.navabharat.org/images/010412p1news14.jpg )लेख नें मुझे यह सब लिखने को आतुर कर दिया है । रमन सरकार में चारो ओर लूट मची हुई है मामला चाहे आदिवासियों की जमीन का हो या उनपर हुए लाठी डंडे के प्रयोग का हो .. किसानों की जमीनों का अधिग्रहण हो या सरकारी ठेके का मामला हो ...हर तरफ खुले आम लूट मची हुई है राज्य में पुल गिर रहे हैं बिना सडकों को बनाए ही  सडकों का भुगतान हो रहा है , बिजली की आड में अरबों का घोटाला हो चुका है और अभी होने को भी है... नक्सली खौफ बता कर उन क्षेत्रों की राशी भी कहां जा रही है कुछ नही पता .. अब जबकी हर ओर अराजकता और महंगाई अपने पैर पसार चुकी है तब जनता अपनी मायूसी निगाहें विपक्ष पर डालती है लेकिन अफसोस.... यहां तो विपक्ष भी बेवजह की लडाई लड रहा है इस राज्य में हर नेता अपने को सबसे ऊपर मान रहा है सबसे दुःख की बात तो ये है की जिन नेताओं को भाजपा कुशासन की बखिया उधेडनी चाहिये वह दिल्ली में बैठकर मंत्रणा कर रहे हैं की किस तरह से कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी को बाहर का रास्ता दिखलाया जाए ।  इसके लिये कहा गया की दिल्ली में बैठकर नंदकुमार पटेल और चरणदास महंत भाजपा के खिलाफ रणनिती तय करेंगे लेकिन भीतरी सूत्रों की मानें तो ये दोनो महानुभाव दिल्ली में बैठकर अजीत जोगी को किसी दुसरे प्रदेश का राज्यपाल बनाकर भेजने का दबाव आलाकमान पर डाल रहे हैं और इसमें अप्रत्यक्ष तौर से मोतीलाल वोरा भी सहयोग कर रहे हैं । 
                       अब जरा एक नजर कांग्रेस के इन बडे नेताओं के ऊपर डालते हैं ।. 
सबसे पहले आते हैं श्रीमान चरणदास महंत ः- इनकी उपलब्धी ये है की जांजगीर, चांपा और कोरबा के बाहर किसी छत्तीसगढ की जनता से पुछो तो वह कहेगा कुछ तो हैं इसके अलावा कुछ पता नही । इन सांसद महोदय को केन्द्रिय राज्य कृषि मंत्री के बनते ही सीधे मुख्यमंत्री का सपना आने लगा है और ये अपने को बहुत महान समझने लगे है जबकि इनकी वास्तविकता हकीकत से कोसो दूर है । हैं तो कृषि मंत्री लेकिन राज्य तो छोडिये अपने संसदीय क्षेत्र के किसानों के हित में कोई कदम नही उठाये वहां के किसानों की जमीन धोखे से हथियाई गई और ये अपने ओहदे को पकडे दिल्ली में बैठे जोगी बुराई करते रहे ।

दुसरे हैं आदरणीय रविंद्र चौबे -- इनकी विधानसभा साजा है और वर्तमान में विपक्ष के नेता कम सत्ता के दलाल ज्यादा समझे जाते हैं । इन्होने एक बार भी भाजपा सरकार को इस तरह से नही घेरा की सरकार हिल जाए इससे सीधा असर जनता पर ये पडा की जनता इन्हे रमन का दल्ला कहने से नही चूकती । कई मौके ऐसे आए जब भाजपा नतमस्तक हो सकती थी उल्टा ये जनाब कोई दुसरे कांग्रेसी के द्वारा उन मुद्दों को उठाने पर बिफर पडते थे । जोगी जी एक ऐसे कद्दावर नेता हैं जिनके आगे सबकी तूती बंद हो जाती है और ये महानुभाव बजाय उनसे सलाह मशविरा करने के दिल्ली जाकर बैठे हैं जोगी जी को राज्यपाल बनाने के लिये अपना दावा लेकर ।
तीसरे परम आदरणीय सज्जन पुरूष हैं नंदकुमार पटेल --  8वीं कक्षा पढे ये जनाब कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष हैं और इन्हे मीठी छुरी कहा जाता है । इनका विधानसभा क्षेत्र कहां का है किसी आम छत्तीसगढी से पुछिये ... वह तो इनका नाम भी सुना हो तो बडी बात होगी जो किसी प्रदेश अध्यक्ष के लिये शर्म की बात होनी चाहिये। वैसे इन्होने बस्तर में अपना एक दांव खेलना चाहा था की बस्तर को अलग राज्य बना दिया जाए यानि जब कोई काम ना हो तो जो दिमाग में आए बोलते चलो । बस्तर वासियों नें कभी खुद को छत्ीसगढ से अलग नही समझे और ये जनाब बिना सोचे समझे उन्हे बांटने चले थे । पार्टी की एकता तो दूर की बात प्रदेश की एकता भी इन्हे नही भा रही है ।
 यानि कांग्रेस की तिकडी केवल दो काम पर लगी हुई है ।
1. भाजपा से सांठ गांठ करके अपना काम निकालो और अपना स्वार्थ निकालते चलो 
2. जोगी जी को प्रदेश से बाहर का रास्ता दिखलाओ क्योंकी यही एक ऐसे व्यक्ति हैं जो गलत नीतियों के लिये  भाजपा के साथ साथ कांग्रेसीयों को भी नही बख्शते हैं ।

इनके अलावा चौथे शख्स हैं राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष मोतीलाल जी वोरा -- इन्हे प्रदेश की राजनीती से कोई लेना देना नही है ये सज्जन पुरूष इतने सीधे हैं की अपने बच्चों को भी गलत काम करने से रोक देते हैं । लेकिन उनके भोलेपन का नाजायज फायदा ये तीकडी उठा रही है । मोतीलाल वोरा को गुमराह करके बताया जाता है की अजीत जोगी के राज्य में रहते कोई भला नही होगा लेकिन वो भला किसका नही होगा ये नही बताते । 
हालांकी अजीत जोगी के शासन को प्रदेश की जनता सबसे बुरा दौर का समझती थी लेकिन कहते हैं की जब तक आपके पास कोई दुसरा ना हो जिससे आप तुलना कर सकें तब तक आप निर्णय नही ले सकते । कुछ ऐसा ही छत्तीसगढ में चल रहा है ।
                   यहां की जनता वर्तमान में इन तीन बडे नेताओं के कारण अब तक भ्रष्टाचार को झेलने के लिये मजबूर हो रही है । राहुल शर्मा मौत एक ऐसा हादसा है जिसके बदले भाजपा सरकार की बलि चढ जाती , आदिवासियों पर डंडे चलो इसके कारण वह गिर जाती, सडकों पर , बिजली के मुद्दों पर , अवैध शराब के मुद्दों पर  एसे कई मोड आए जहां पर भाजपा सरकार या गिर जाती या घुटने टेक जाती । जब रमन सिंह पर म.प्र. की खदानों का मामला उठा तो बजाय उसकी सच्चाई जाने अपना मौन समर्थन कांग्रेस नें दे दिया ।
                  दरअसल अजीत जोगी को बाहर रखने की एक वजह है प्रशासन पर गहरी पकड । चूंकी वे एक दूरदर्शी की सोच रखते हैं इसलिये कोई भी उन्हे जल्दी घुमा नही सकता ना अधिकारी और ना ही कोई दलाल .. जोगी जी साफ और स्पष्ट कहने के लिये बदनाम हैं जब नंदकुमार नें अलग बस्तर की मांग उठाए तो सबसे पहली कडी प्रतिक्रिया स्वयं अजीत जोगी नें ही दिये थे इसके अलावा उन्हे राजनितीक समझ भी गहराई तक है वे जानते हैं की जनता क्या चाहती है । हालांकी उनके कार्यकाल को जबरन बदनाम किया गया और इसकी वजह थे यही कांग्रेसी जो आज जोगी जी को अलग करके भाजपा सरकार से हाथ मिलाकर अपने को शहंशाह समझ रहे हैं जबकि आगामी चुनाव उन्हे धरातल दिखाने वाला है । 
          चूंकी जोगी जी को तत्काल छत्तीसगढ आकर एक बडा पद संभालना पडा था सो उन्होने रविंद्र चौबे जैसे लोगों पर भरोसा कर लिये जो आज उन्हे और पार्टी को खोखला करके खुद राजा बनने को ऊतारू हो रहे हैं जबकी स्वंय अजीत जोगी पहले इंजिनियरिंग कॉलेज में प्रोफेसर थे फिर आई.पी.एस. बने उसके बाद आई.ए.एस. की शिक्षा भी पूरी कर लिये । कहने का मतलब यह है की जो व्यक्ति अपने कर्मों से राजा साबित हो चुका हो उसे किसी के रहमो करम की आवश्यकता नही होती है जबकी इन्हे विशेष  तौर पर पटेल जी को तो कोई ना कोई सरपस्ती जरूरी लगती है ।    

              अब दुसरी ओर केंन्द्र को देखें ... क्या ममता बनर्जी से उसे कोई सबक नही मिला ... जो ममता बनर्जी कांग्रेस की मुख्यमंत्री बन सकती थीं आज अपनी क्षेत्रीय पार्टी के बल पर वाम पंथीयों को परास्त कर दी कहीं अजीत जोगी नें भी वैसा करने की ठाने तो ये जरूर है की प्रदेश की जनता का समर्थन उन्हे अपने आप मिल जाएगा .... क्योंकी छत्तीसगढ की जनता केवल तीन नेताओं को जानती है और उनमें से एक को चुनेगी एक अजीत जोगी दुसरे रमन सिंह तीसरे दिलीप सिंह जुदेव.....कांग्रेस में दुसरा कौन ...आप बतलाएं
वैसे नीचे कुछ महत्वपूर्ण लिंक दे रहा हूँ जो आँखे खोलने को काफी है-
http://www.bhaskar.com/article/CHH-OTH-1910058-2996331.html (बस इतिश्री हो गई आदिवासी मामले की)
                  वैसे कांग्रेस  आलाकमान को चाहिये की वह अजीत जोगी के बारे में कोई फैसला करने के पहले हर जिले में एक सर्वे करा ले और जो गल्तीयां उत्तर प्रदेश में कर चूकी है वह छत्तीसगढ में दोहराने की गल्ती ना करे । क्योकी छत्तीसगढ में मिली हार के बाद से अब तक कांग्रेस पार्टी क्या मंथन कर रही है ये केवल तीन बडे नेता ही बता सकते हैं ।