Friday, July 20, 2012

देश में बढते कार्टुनी बच्चे ।

हिन्दू धर्म एक बहती हुई नदी के समान है, जिसमें कई प्रकार की धाराएं आकर मिलती हैं और उसी में एकरूप होती हैं… इस बहती हुई नदी की गहराई में विभिन्न प्रकार के जीव-जन्तु पनपते हैं जो आपसी साहचर्य से रहते हैं…...

ये शब्द लिखे मिले श्री सुरेश चिपलुनकर जी की फेसबुक वाल में औऱ बस फिर क्या था  उन्हे धन्यवाद देते हुए हम भी मैदान में आ गये । जिस तरह से हमारे वेद पुराणों को भुलाते हुए सुपरमैन, बैटमेन, बेन10 वगैरह वगैरह जैसे ना जाने कितने कालपनिक चरित्र हमारे बच्चों के मन में बस चुके हैं । बच्चे कार्टुन देखते हैं और हम एक दुसरे को बताते रहते हैं की देखो ना जब देखो तब बच्चे बस कार्टुन चैनल लगाकर अपने में मस्त रहते हैं ।...लेकिन क्या सचमुच बच्चे  अपने में मस्त रहते हैं ...नही वे ना केवल कार्टुन में मस्त रहते हैं बल्कि जीवन शैली में उसी चरित्र को उतारने का प्रयास करने लगते हैं । मैं अपने बडे बेटे प्रणव को देश के उन 85 प्रतिशत बच्चों में सम्मिलित देखता हूँ जो   12 साल की उम्र होने के बाद भी वह टीवी में कार्टुन चैनल देखना ज्यादा पसंद करता है और पापा देखते ही डिस्कवरी चैनल लगा लेता है । 

          सवाल ये नही की मेरा बच्चा क्या कर रहा है सवाल ये है की इसमें मेरा स्वयं कितना दोष है .... इसमें मैं स्वयं बहुत बडा दोषी हूं प्रणव को पूरा समय ना दे पाना, व्यवसाय का तनाव उसके सामने जाहिर करना और सबसे बडी बात वैदिक पढाई से उसे दूर रखना । .......... । मैने महसूस किया की मैं स्वयं अपने को अपनी प्राचीन शिक्षा पद्यति से दूर होता महसूस कर रहा हूँ । पूजा पाठ में पूरा समय ना दे पाना , बडों को आदर ना देना, चरण स्पर्श करने में हिनता महसूस करना...आखिर ये क्या हो रहा है क्यों मैं और मेरे बच्चे उस विद्या से दूर हो रहे हैं जिनकी बुनियाद पर मेरे संस्कार, मेरा अर्थशास्त्र, मेरे देश की राजनीति, दुश्मनो के लिये कूटनीती सब कुछ खडी थी कहां गया वो बुनियादी ढंचा । अब बच्चे राम औऱ कृष्ण के बने कार्टुन चरित्र देख रहे हैं ऐसी कहानियों के साथ जिनका कोई सिर पैर नही है यानि ...कोरी कल्पना जबकी रामायण से लेकर महाभारत तक सब कुछ वास्तविक घटनाएं हैं । वह हमारा ऐसा इतिहास है जिसे हमें याद रखना होगा और अपने बच्चों को बताना होगा ...लेकिन कैसे ....यह मुझे समझ में नही आ रहा है । 
                                                           कुछ दिन पहले मेरे छोटे बेटे नें अपनी क्लास 5 की पुस्तक पढते हुए पुछा की पापा आपको पता है चिकन में कितनी कैलोरी होती है ..... मैं सन्न रह गया लिखा था चिकन में हरी सब्जियों की तुलना में 25 प्रतिशत ज्यादा कैलोरी होती है ... मात्रा का अता पता नही और लिख दिया गया था की इतने प्रतिशत ज्यादा ...मैने रात 9 बजे के आसपास बच्चे के स्कूल के एम.डी. को फोन करके सीधे पुछा की सरजी चिकन में कैलोरी की मात्रा बताएं... वह हडबडा गये बोले क्या बात है मिश्राजी इतनी रात को ये बात कैसे ...मैने उन्हे पूरी बात बताई तो उन्होने कहा की कल बच्चे के साथ उस पुस्तक को मेरे पास भेजिये ...मैने दुसरे दिन भेजा दोपहर को उनका फोन आया और उन्होने बताये की क्सास 5 की सभी कक्षाओं को सूचित कर दिया गया है की उस चैप्टर को हटा दिया जाए । ....... । लेकिन क्या यह उस समस्या का स्थाई समाधान हुआ .. इससे बाकी स्कूली  बच्चे क्या शिक्षा लेंगे । कक्षा नौंवी तक सभी बच्चों को पास करना जरूरी कर दिया गया है इससे शिक्षा के उस मापदण्ड का क्या होगा जो हमारे बुजुर्गों नें तय किये हैं । इतिहास में क्या पढाया जा रहा है उससे हम सब वाकिफ हैं लेकिन क्या कर रहे हैं ये नही सोचे...सोचने का समय भी नही है अब तो बस मैकालें अंकल का बताया पाठ पढ रहे हैं हम लोग और बच्चों को बता रहे हैं सब्जी छोडो चिकन खाओ ...दुध छोडो अण्डे खाओ....यानि अपनी परंपरा के साथ साथ हम बच्चों को धर्म से दूर करते जा रहे हैं ।
                                                                 एक समय था जब ब्राह्मणों के घर अण्डा या मांस मच्छी कहने पर कुल्ली करवा दी जाती थी और अण्डा छूने पर नहाना पडता था उन्ही ब्राह्मणों  घरों के बच्चे सुबह आमलेट दोपहर को केएफसी शाम को पिज्जाहट और रात में बीयर के साथ तंदूरी मुर्गा खाकर घर पहुंचते हैं और माँ बाप को पता भी नही चलता की बेटा क्या कर रहा है क्योंकी सबको जीने की आजादी सरकार नें दे दी है ....
                                              हमारे हिंदु धर्म के वर्णों को तोडकर अलग अलग धर्म बना दिया गया , एकल परिवार को बढावा दिया गया, परिवार नियोजन केवल हिंदुओं पर लागू करके रखा गया, आदिवासी ईसाइ बन गये हैं लेकिन उन्हे आरक्षण आदिवासियो का दिया जा रहा है , मुगलों के देश में आने पहले बने हमारे मंदिरों को मस्जिद, मजार और दरगाह माना जा रहा है , हमारा देश गाय बैलों के मांस का दुनिया का सबसे बडा निर्यातक बनने की ओर है ...............
                                         और हमारे बच्चे कार्टुनी चरित्र बनने की ओर.......पहली बार लिख रहा हूँ ...वंदे मातरम्

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