बडे दिनों से एक मनमोहिनी बांसुरी की गुंज सुनाई पड रही थी । कभी उस धुन से सिलेंडर मरता था तो कभी पेट्रोल जलता था लेकिन उस मनमोहिनी धुन को सुनना सबकी मजबूरी थी क्योंकि उसे बजाने वाला अपनी ही धुन सुनाने में तुला रहता था उसे इस बात से कोई फर्क नही पडता था की कोई उससे बांसुरी रोकने को कह रहा है या कोई उससे कुछ समय चुप रहने की मांग कर रहा है उसे कोई फर्क नही पडता था। तभी उसकी बांसुरी का सुर बदल कर एफडीआई पर आ गये उस धुन पर उसे सुनने वाले खूब चिखे चिल्लाये उसे चुप हो जाने को कहते रहे लेकिन कोई फर्क नही पडा आखिर लोग ही चुप हो गये और धुन यथावत बजती रही । जनता खामोश थी उसके लिए धुन सुनना इसलिये भी मजबूरी थी क्योंि उसे पता ही नही था की वह मनमोहिनी बांसुरी बजा कौन रहा है ।
अब उसके सुर धीरे धीरे थमने लगे ... देश जैसा का तैसा शांति पूर्वक चल रहा था अचानक एक हादसा हो गया । बांसुरी वादक के घर में ही बलात्कार हो गया वो भी ऐसा की जिसने हर किसी के रोंगटे खडे कर दिये जिसने सुना वह उत्तेजित हो गया इस बीच उसके सहयोगी जो अलग अलग वाद्य लेकर बैठे थे उनके आपसी सुर बदल गये और ध्वनी कर्कश हो गई बस फिर क्या था उसल कान फाडू संगीत को बंद कराने के लिये जनता घरों से निकल पडी । अब उसे तलाश है उस बांसुरी वादक की जो देश की अस्मत से खिलवाड होने के बाद भी अपने घर में बैठा चैन की बांसुरी बजा रहा है ।
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