कभी कभी मेरे मन में ये खयाल आता है की हम देवता को देवता ही क्यों कहते हैं राक्षस क्यों नही, आदमी - आदमी ही क्यों कहलाता है जानवर क्यों नही कहलाता सांसदों को डाकू क्यों नही कहते हैं वगैरह वगैरह .... फिर मन में खयाल करना छोड कर मनन शुरू किया औऱ पाया की मेरा खयाल ही गलत है । हम इंसान है और हर चीज की आकृति देखने के लिये उसका नामकरण करके रखे हैं मसलन यदि आँख बंद करके सोचूं सोनिया... तो माँ लक्ष्मी की सूरत नही आती बल्कि सोनिया की ही तस्वीर दिखती है ।
खैर छोडो आगे की बात रखता हूँ ... इस छोटी सी धरती पर भारत नामक एक छोटा सा देश हुआ करता है जिसमें विभिन्न प्रकार के प्राणी विचरण करते हैं सूक्ष्मदर्शी से भी ना देखे जा सकने लायक सूक्ष्म भ्रष्टाचारी जीवों से लेकर दिग्विजय सिंह जैसे विभिन्न आकार, प्रकार और विचारों वाले प्राणीयों तक । बहुत ही कम लोगों को यह ज्ञात होगा कि दिग्विजय को जल्द से जल्द संरक्षित प्राणीयों में रखने के लिये कांग्रेस एक संरक्षित पार्क बनाने वाली है जहां दिग्विजय सहित अन्य इकलौती खूबियों वाले प्रणीयों को रखा जाएगा जैसे वफादार कलमाणी के लिये उस पार्क में अलग से कटघरा रखा जाएगा । इस मुहिम को आगे बढाने व इससे मिलने वाले असीमित लाभ शीघ्र पाने के लिये इस आंदोलन को दिग्गी राजा के हाथों में सौंप दिया गया है क्योंकि उन्ही की अनेक विशेषताओं में से एक यह भी है कि वे संरक्षित प्राणीयों को जल्द सूंघ लेते हैं ( सोनिया, राहुल इसके उदाहरण हैं भाई) ।
अपने वफादारी गुणों के अनुरूप दिग्गी राजा चुपचाप बैठे हुए अमर सिंह को सूंघ रहे थे । अमर की गिरफ्तारी पर भी वे केवल चीभ निकाले हांफते बैठे रहे लेकिन जैसे ही एक हिरोइन का बयान आया की देख अमर का मुंह खुला तो तेरे मालिकों की भी खैर नही वैसे ही तुरंत कटकटाकर दौड पडे अमर सिंह को डुबने से बचाने के लिये । इसके पीछे दो कारण है एक दिग्विजय ही ये जानते हैं की अमर सिंह भी उन्ही की तरह संरक्षित प्रजाती में शामिल होने की दौड में हैं और दुसरा ये की अमर के प्रसिद्ध वचनों में से एक है की हम तो डुबेंगे , सनम तुमको भी ले डुबेंगे । अब आप ही बताओ की सनम तो सनम है चाहे वो अमर सिंह की हो या दिग्विजय की ... बस फिर क्या था दिग्गी राजा नें फरमान जारी कर दिया की अमर सिंह निर्दोष हैं क्योंकि उन्हे सनम का समर्थन है और अन्ना हजारे इसलिये भ्रष्ट हैं क्योकि उन्हे आर.ए.एस. नें समर्थन दिया हुआ है ।
अब दो ही रास्ते हैं की अपने खयाल का फिर से अध्ययन करूं और सोचूं की कहीं ऐसा तो नही की हमारे सरकारी शब्दकोष में निर्दोष का मतलब अपराधी और भ्रष्ट का मतलब इमानदार हो गया है और दुसरा सरल रास्ता ये है की चादर तान कर सोता ही रहूँ ।
इस हिरोइन को गिरफ्तार करके पूंछना चाहिये कि कौन कौन लोग मुश्किल में आयेंगे और क्यों --
ReplyDeleteअमर दोहे
ReplyDeleteSanjay Dutt, Manyata and Amar Singh
व्यर्थ सिंह मरने गया, झूठ अमर वरदान,
दस जनपथ कैलाश से, सिब-बल अंतरध्यान |
इतना रुपया किसने दिया ?
फुदक-फुदक के खुब किया, मारे कई सियार,
सोचा था खुश होयगा, जन - जंगल सरदार |
जिन्हें लाभ वे कहाँ ??
साम्यवाद के स्वप्न को, दिया बीच से चीर,
बिगड़ी घडी बनाय दी, पर बिगड़ी तदबीर |
परमाणु समझौता
अर्गल गर गल जाय तो, खुलते बन्द कपाट,
जब मालिक विपरीत हो, भले काम पर डांट |
हम तो डूबे, तम्हें भी ---
दुनिया बड़ी कठोर है , एक मुलायम आप,
परहित के बदले मिला, दुर्वासा सा शाप |
मुलायम सा कोई नहीं
खट मुर्गा मरता रहे, अंडा खा सरदार,
पांच साल कर भांगड़ा, जय-जय जय सरकार |
बहुत खूब बंधू छा गए हो .विलुप्त प्राय :प्राणियों की सूची में दाल दो -मम्मी जी ,मंद मति बालक ,ओर दिमागी राजा को .
ReplyDeleteआँखे - माखू दूसता, संघ - हाथ बकवाद ||
ReplyDeleteअर्जुन का यह औपमिक, है औरस औलाद |
है औरस औलाद, कभी बाबा के पीछे ,
अन्ना की हरबार, करे यह निंदा छूछे |
सौ मिलियन का मद्य, नशे में अब भी राखे,
बड़का लीकर किंग, लाल रखता है आँखे ||
(२)
आतंकी की प्रशंसा , झेले साधु-सुबूत
जहल्लक्षणा जाजरा, महा-कुतर्की पूत |
महा-कुतर्की पूत, झाबुआ रेप केस में,
दोषी हिन्दू-संघ, बका था कहीं द्वेष में |
भागा भागा फिरा, किया भारी नौटंकी,
लिया जमानत जाय, चाट कर यह आतंकी ||
(३)
क्रूर तमीचर सा बके, साधु-जनों पर खीज ||
तम्साकृत चमचा गुरु, भूला समझ तमीज |
भूला समझ तमीज, बटाला मोहन शर्मा,
कातिल नहीं कसाब , बताता है बे-धर्मा |
कहे करकरे साब, मारता हिन्दू-लीचर ,
पागल करे प्रलाप, विलापे क्रूर-तमीचर ||
(४)
वो माया के फेर में, करे राम अपमान,
मिले राम-माया नहीं, व्यर्थ लड़ाए जान|
व्यर्थ लड़ाए जान, बुड़ाया अपनी गद्दी,
गले नहीं जब दाल, करे तरकीबें भद्दी |
बोला तब युवराज, अशुभ है इसका साया,
हूँ मुश्किल में माम, बड़ी टेढ़ी वो माया ||
anna tum sanghash karo....
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