शीर्षक पढ कर समझ आ गया होगा कि मैं हिंदुत्व का राग अलापने जा रहा हूँ । हाँ मैं अपने देश के प्रचीन सनातन धर्म के उपनाम हिंदु धर्म पर ही बात करने जा रहा हूँ । कल रात मैं ब्रह्मकुमारी के आश्रम में प्रतिदिन जाने वाले अपने पडोसी दीपक बुक डिपो के संचालक श्री धनराज टहल्यानी से चर्चा कर रहा था और वहीं से निकली बातों की गंभीरता यहां लिख रहा हूँ , क्योंकि उन्हे वहां नही समझा सकता था ।
बात निकली हिंदु धर्म की तो उन्होने सनातन धर्म की रट पकड लिये उनका कहना था कि हिंदु शब्द मुस्लिम आक्रांताओं नें दिये हैं जबकि मेरा मत था कि सदियों पहले जब हमारा देश और चीन एक साथ प्रेमभाव में बसते थे उस समय चीनी हमें इन्दु (चंद्रमा) कहते थे क्योंकि हमारे पंचांग, राशियों का निर्धारण चंद्रमा की गति, स्थान से ही होता है, जो धीरे धीरे इ से हि में बदल गया (शब्दों पर ध्यान दिजिये स का ह में बदलना अटपटा लगता है लेकिन इ और हि के उच्चारण समान होते हैं )
अब हम हिंदु सनातनीयों को सोचना होगा कि हम क्या कर रहे हैं बजाय विश्व में अपने सनातनी हिंदु धर्म को फैलाने, प्रचार करने के उस एक ही चीज के दो नामों पर अडते हुए लड रहे हैं । आप बताइये मेरे हिंदु कहने पर आपके सनातन नाम पर क्या फर्क पड रहा है । मैं हिंदु हूँ उस पर ब्राह्मण भी हूँ मैं मानव जाति की श्रेष्ठ जाति हूँ लेकिन मैं अपने धर्म को सनातन ना कह कर हिंदु कह रहा हूँ तो क्या आप मेरी जाति बदल देंगे या मेरे विचार मिटा देंगे । हमें आज की बातों को सोचते हुए ये भी सोचना होगा कि हमारे पूर्वजों की इसी अकड के कारण आज हमारी विभिन्न जातियां धर्मों में बदल गई हैं । सिक्ख, जैन, बौद्ध क्या पहले से धर्म हैं ? नहीं ! फिर सबसे पहले ये सोचिए कि किस कारण से हिंदु धर्म की जातियां अलग धर्मों में बदल गई हैं ।
यदि मैं ये नही लिखूंगा तो मेरा मन हमेशा मेरे ब्राह्मणत्व को कचोटेगा कि मैने समय पर ये सब क्यों नही बताया । यदि आप सनातन की रट पकड कर रखेंगे तो यकिन जानिये वो दिन दूर नही रहेगा जब आप सनातनी धर्म और मैं हिंदु धर्म का अनुयायी कहलाऊंगा, बजाय आप अपने को केवल सनातनी कहने के सनातनी हिंदु कहें ताकि धीरे धीरे आज के हिंदुओं को लगने लगे कि हाँ हमारा हिंदु धर्म ही प्राचीन सनातनी धर्म है ।
नाम के पीछे भागने के बदले हमें एकता की जरूरत है केवल यज्ञ कर्म करने से हम अपने देश को मिटने से नही बचा सकेंगे हमें अपने ईश्वर को मानने के साथ साथ अपने कर्मों को भी बदलने की जरूरत है ।
- आज सौ करोड हिंदुओं को हमने केवल 800 आदमीयों के भरोसे क्यों रखे हैं ?
- आज नेताओं का भ्रष्टाचार खुलेआम चल रहा है इसके लिये हमारे धर्माचार्य क्या कर रहे हैं ?
- आज हमारा भविष्य विदेशी महिला और उसके संकर्ण प्रजाती के बच्चों के भरोसे क्यों दिया जा रहा है?
- आज भी हमारा संविधान हमें गर्व से हिंदु कहने की आजादी क्यों नही देता है ?
- आज हम अपने देश के धर्मदेवताओं की पवित्र भूमि को स्वतंत्र क्यों नही करा पा रहे हैं ?
- आज भी हमारा शिक्षा तंत्र विदेशी शिक्षा (मैकाले) पर क्यों निर्भर है ?
- आज हम अपने बच्चों को वैदिक ज्ञान दिलाने वाले शिक्षण संस्थान शुरू नही करवा पा रहे हैं क्यों ?
- आज हमारे देश की पुलिस और सैनिक भ्रष्ट नेताओं के कारण क्यों बलि चढ रहे है ?
- आज हम राष्ट्रीय सेवक संघ से क्यों नही जुड पा रहे हैं ?
10. आज हम देश के भ्रष्टाचार और अन्याय के खिलाफ खडे होने के बदले हाथ बांधकर उन संतो और बाबाओं के पीछे क्यों खडे होते हैं जो हमें भगवान की महिमा का बखान तो सुनाते हैं लेकिन असल जिंदगी में उनके बनाये उत्पादों का हम प्रचार करते हैं ?
कुछ आप सोचिये कुछ हम सोचेंगे तभी देश को एक रंग में बदल सकेंगे । तिरंगा झंडा हमारा कभी नही हो सकता क्योंकि उसमें तीन धर्मों का मिलान है और अब हम अपने देश को एक रंग में रखना चाहते हैं । केसरी हिंदु, सफेद ईसाइ और हरा मुसलामनों का धर्मरंग है, सारा देश केवल केसरी में रंगेगा तभी हम कह सकेंगे रंग गया बसंती चोला ।
चक्र को रहने देंगे क्योंकि वह हमारे विश्वसम्राट अशोक का राजचिन्ह है ।
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