Sunday, October 10, 2010

हे रावण तुम कब आओगे

हे महावीर , पराक्रमी, महाज्ञानी, महाभक्त,  न्यायप्रिय, अपनों से प्रेमभाव रखने वाले , अपनी प्रजा को पुत्र से ज्यादा प्रेम करने वाले, धर्म आचरण रखने वाले,
अपने शत्रुओं को भयभीत रखने वाले, वेदांत प्रिय त्रिलोकस्वामी रावण  आपकी सदा जय हो !

                      हे महावीर आपके समक्ष मैं नासमझ अनजाना बालक आपसे सहायता मांग रहा हूँ । हे रावण मेरे देश को बचा लो उन दुष्ट देवता रूपी नेताओं  से जो हर साल आपके पुतले को जलाकर आपको मार रहे हैं और आपको  मरा समझ अपने को अजेय मान रहे हैं । हे पराक्रमी दसशीशधारी आज मेरे देश को आपकी सख्त जरूरत आन पडी है । जनता त्राही त्राही कर रही है ओर राजशासन इत्मीनान से भ्रष्टाचार, व्याभिचार और धर्मविरोधी कार्यों में लगा हुआ ।
                                         हे रावण मुझे आपकी सहायता चाहिये इस देश में धर्म को बचाने के लिये , उस धर्म को जिसे निभाने के लिये आप स्वयं पुरोहित बनकर राम के समक्ष बैठकर अपनी मृत्यु का  संकल्प करवाए थे । आज हमारे राजमंत्री अपने को बचाने के लिये प्रजा की आहूति दे रहे हैं । हे रावण आप जिस राम के हाथों मुक्ति पाने के लिये अपने प्राणों को न्यौछावर कर दिये वही राम आज अपने ही देश में, अपनी ही जन्मस्थली को वापस पाने के लिये इस देश के न्यायालय में खडे हैं । हे रावण अब राम में इतना सामर्थ्य नही है कि वह इस देश को बचा सके इसलिये आज हमें आपकी आवश्यकता है ।
                                   हे दशग्रीव हम बालक नादान है जो आपकी महिमा और ज्ञान को परे रखकर अब तक अहंकार को ना जला कर मिटाकर आपको ही जलाते आ रहे हैं । हे परम ज्ञान के सागर, संहिताओं के रचनाकर   अब हमें समझ आ रहा है कि जो दक्षिणवासी आप पर श्रद्धा रखते आ रहे हैं वो हम लोगों से बेहतर क्यों हैं । हे त्रिलोकी सम्राट हमें अपनी शरण में ले लो और केवल दक्षिण को छोड समस्त भारत भूमि की रक्षा करने आ जाओ । हे वीर संयमी आपने जिस सीता को अपने अंतःपुर मे ना रख कर अशोक वाटिका जैसी सार्वजनिक जगह पर रखे ताकि कोई आप पर कटाक्ष ना कर सके वही सीता आज सार्वजनिक बाग बगीचों में भी लज्जाहिन होने में गर्व महसूस  कर रही है ।
                               हे शिवभक्त मेरे देश में  यथा राजा तथा प्रजा का वेदकथन अभी चरितार्थ नही हो पाया है अभी प्रजा में आपका अंश बाकि है लेकिन हे प्रभो ये रामरूपी राजनेता , प्रजा के भीतर बसे रावण को पूरी तरह से समाप्त करने पर तुले हुए हैं ।

                           त्राहीमाम् त्राहीमाम् ....... हे राक्षसराज रावण हमारी इन रामरूपी नेताओं से रक्षा करो ।

3 comments:

  1. vyam rakshaam - ham raksha kareinge
    aaj ke in saikular shaitaanon ko dekh kar to raksh sanskriti ke prneta 'ravan' bhi sharmsaar ho jayega.

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  2. Written with a real concern ! It's important to save our identity and hence our culture .

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