सुबह सुबह ये दृश्य मनमोह लेता है । एंडरसन और नृत्यानंद गायब हो जाते हैं केवल ये याद रह जाता है ... वाह क्या खूबसूरती है । आपने आसमान कब देखा था ... कब आपने आसमान में उडती पतंगो की गिनती की थी, कब आप कागज की नाव के पीछे दौडे थे, कब आप कुश्ती दंगल देखने अपने पिता के कंधे पर चढे थे ... सब यादें आंखो के सामने घुमने लगती हैं । हम भूल जाते हैं कि घरवाली बच्चों को नहाने के लिये चिल्ला रही है, कामवाली बाई कल की बरसात में हुए अपने अनुभव सुना रही है, पडोसी के घर बच्चा हुआ है लेकिन याद रहता है आंखो की वासना , वह तो इस तरह से प्रकृति को घूर रही है मानो 16 साल की लडकी के यौवन को निहार रही हो । तभी घररररररर की आवाज से तंद्रा टुटी देखा निगम की गाडीयां इस तरह से भाग रही है जैसे आपातकाल लागू हो गया हो । भई अब अध्यक्ष हूँचलो मेरी कल की खबर में हुई भविष्यवाणी सच तो हुई ।
No comments:
Post a Comment
आपके विचार